भगवान सिंह का जन्म, 1 जुलाई 1931 गोरखपुर जनपद के एक
मध्यवित्त किसान परिवार में। गोरखपुर विश्व विद्यालय से एम. ए. (हिंदी) । आरंभिक
लेखन सर्जनात्मक कविता, कहानी, उपन्यास और आलोचना। 1968 में भारत की सभी भाषाओं को
सीखने के क्रम में भाषाविज्ञान और इतिहास की प्रचलित मान्यताओं से अनमेल सामग्री
का प्रभावशाली मात्रा में पता चलने पर इसकी छानबीन के लिए स्थान नामों का
भाषावैज्ञानिक अध्ययन, अंशतः प्रकाशित, नागरीप्रचारिणी पत्रिका,(1973)। इसके बाद
मुख्य रुचि भाषा और इतिहास के क्षेत्र में अनुसंधान में और सर्जनात्मक लेखन प्रासंगिक
हो गया। इसके बाद के शोधग्रंथों में हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य, दो खंडों
में, (1987) राधाकृष्ण प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली; दि वेदिक हड़प्पन्स,(1995),
आदित्य प्रकाशन, एफ 14/65, मॉडल टाउन द्वितीय, दिल्ली- 110009; भारत तब से अब
तक(1996) शब्दकार प्रकाशन, अंगद नगर, दिल्ली-92, (संप्रति) किताबघर प्रकाशन,
दरियागंज, नई दिल्ली; भारतीय सभ्यता की निर्मिति (2004) इतिहासबोध प्रकाशन,
इलाहाबाद; प्राचीन भारत के इतिहासकार, सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली,(2011);
कोसंबीः कल्पना से यथार्थ तक, आर्यन बुक्स इंटरनेशनल, नई दिल्ली,(2011); आर्य-
द्रविड़ भाषाओं का अंतः संबंध, सस्ता साहित्य मण्डल (2013); भाषा और
इतिहास,(प्रकाश्य)। संप्रति ऋग्वेद का सांस्कृतिक दाय पर काम कर रहे हैं।
लेखक का पोस्टल एड्रेस परिचय में नहीं है।
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