स्वतंत्रता की खोज

आज मैं तुम्हें दो चार हजार साल पीछे ले चलूँगा। तैयार हो?

आगे चलने की बात होती तो सोचता भी, इतने पीछे तो हर चीज सड़ रही होगी।

सड़ाँध वर्तमान से ही आती है, अतीत में तो सब कुछ अश्मीभूत हो जाता है।

“जरूरत क्या पड़ गई इतने पीछे लौटने की?”

“मैं तुम्हें यह बताना चाहता था कि हमारे यहाँ स्वतंत्र जन्मा या फ्री बार्न की अवधारणा नहीं रही है। मनुष्य नहीं जीवमात्र अपने कर्म बन्धन के साथ जन्म लेते हैं।“

यह तो तुम एक बार कह चुके हो। मैंने मान भी लिया था। इसी बात को कितनी बार दुहराओगे। 

“मैं जिन शब्दों का प्रयोग करते हुए तुमसे बात कर रहा हूँ उनमें से बहुतों का सैकड़ों बार प्रयोग कर चुका हूँ। प्रश्न शब्द या विचार का नहीं, सन्दर्भ का है। मैं यह याद दिलाना चाहता था कि स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है जैसे नारे केवल राजनीतिक या सांस्थानिक दबाव के सन्दर्भ में सही हैं। रूसो का आशय भी मात्र यही था। वह सार्विक नहीं था। चन्द्रशेखर इसी अर्थ में आजाद थे कि वह ब्रिटिश सत्ता की अधीनता नहीं स्वीकार करते थे और उसे उखाड़ फेंकने को कृतसंकलप थे। अन्यथा मनुष्य तो माँ के गर्भ से भी नाभि-नाल-बद्ध पैदा होता है और स्वयं उस बन्धन को काट भी नहीं सकता, दूसरे किसी को ही उसे काट कर मुक्त करना होता है।

स्वतन्त्रता का हमारे यहाँ अर्थ था अपनी रक्षा का भार स्वयं उठाना या स्वावलम्बन रहा है, फ्रीडम के पर्याय के रूप में इसका प्रयोग नया-नया है। मनु के एक कथन को नारीवादी आन्दोलनकारी और हिन्दू समाज-व्यवस्था को गर्हित सिद्ध करने वाले अक्सर उद्धृत करते हैः पिता रक्षति कौमार्ये भर्ता रक्षति योग्वने, रक्षति पुत्रः वार्धक्ये न स्त्री स्वातऩ्यमर्हति परन्तु इसके साथ उन पंक्तियों को प्रायः भूल जाते हैं जिनमें नारी काी के सम्मान की बात की गई है या अपने आवेश में उसका भी उपहास करते हैं। यहा मेरा प्रयोजन उसको उचित ठहराने का नहीं है, अभिप्राय यह याद दिलाने का है कि मनु ने स्वातन्त्र्य का प्रयोग 'स्वतः अपनी सुरक्षा करने में समर्थ' के अर्थ में लिया है, न कि बांध कर रखने के आशय में। नीतिग्रन्थों में व्याख्या की गुंजायश नहीं होती इसलिए मनु ने जो नहीं कहा, वह यह कि स्त्री अपनी कायिक सीमाओं के कारण अधिक अरक्षित है, वह अपनी रक्षा नहीं कर सकती। अतः शैशव से ले कर बुढ़ापे तक उसके स्वजनों में से किसी न किसी को उसकी रक्षा का दायित्व उठाना पड़ेगा। आज भी अन्यथा स्वतन्त्र महिलाओं को यदि किसी अपरिचित परिवेश में जाना हो तो वे अपने साथ किसी को रक्षक या एस्कोर्ट के रूप में लेकर जाना जरूरी समझती हैं।  मैंने एक आधुनिक लड़की को राह चलते अपनी सहेली से यह बात करते सुना कि उसका ब्वाय फ्रेंड उस दिन उसके साथ नहीं था इसलिए अमुक जगह उसे अभद्र व्यवहार का सामना करना पड़ा। तो अब पति के स्थान पर उसका प्रेमी मात्र प्रेमी नहीं उसका रक्षक भी है। यह बात हमारी पीढ़ी के लोगों के गले शायद मुश्किल से उतरेगी कि वे सर्वत्र अपनी सन्तान का ध्यान नहीं रख सकते और सुरक्षा का तकाजा भी ब्वायफ्रेंड की तलाश में से एक प्रधान कारण है। 

आज भी यही उम्मीद हम अपनी पुलिस से करते हैं, परन्तु पुलिस को यह अधिकार नहीं देते कि वह सुझा सके कि उसे सर्वाधिक सुरक्षित रहने के लिए किन नियमों का ध्यान रखना चाहिए। रखना चाहिए, कह रहा हूँ। रखना होगा नहीं। परन्तु यदि गलती से किसी ने यह सुझाव दे दिया तो उसकी आफत। अरे भाई, आपके ही बच्चों की सुरक्षा के लिए कहा जा रहा है, कि टेनिसकोर्ट की ड्रेस को सड़क बाजार का ड्रेस और बेड रूम के व्यवहार को गली बाजार का व्यवहार न बनाएँ। नारी स्वातन्त्र्य के नाम पर कामुकता की पुतली बनाने के लिए तो आप उकसा रहे हैं। यदि एक महिला पुलिस अधिकारी भी सार्वजनिक स्थल पर अशोभन व्यवहार के लिए कठोर कदम उठाती है तो मारल पोलिसिंग को खतरनाक बता कर वे ही लोग शोर मचाते हैं जो सामूहिक बतात्कार की बढ़ती प्रवृत्ति को पुलिस की विफलता बता कर शोर करते हैं। पहले उकसाते हैं कि समाज की टीकाओं और टिप्पणियों की चिन्ता मत करो, तुम्हारा प्राइवेट बिहैवियर यदि पब्लिक बन जाए तो उससे पब्लिक शरमाए, तुम्हे झिझकने की जरूरत नहीं है। यह एक  जटिल समस्या है। हो सकता है इसके कुछ पहलू मेरी समझ में न आएं और इसका कोई सरल समाधान भी नहीं है। खास कर उन परिस्थतियों में जिनमें मनोरंजन और विज्ञापनों की दुनिया ने जैव विकारों को आनी लोकप्रियता का साधन बना रखा है। पर मनचलेपन को ही स्वतन्त्रता मान लेने के इस अहंकार के कारण ही आपदा का पहाड़ भी उस पर टूट पड़े इसकी संभावना बढ़ती है। कोई उनसे पूछे कि जो लोग और माध्यम तुम्हारे मनचलेपन को स्वतन्त्रता बता कर तुम्हें उकसाते हैं वे तुम्हारी जोखिम की कीमत पर अपना फैशन का कारोबार करना चाहते हैं, यह तुम्हें पता है और यदि हां तो क्या उस कारोबार का चलता फिरता माडेल बनने का मोल तुम्हें भी मिलता है। प्रसार चैनलों को विज्ञापन मिलता है, वे अपने कारोबार के लिए मारल पोलिसिंग का विरोध करते हैं और उनके कथन को उसकी तार्किक परिणति पर जे जाएं तो वे इसी के लिए इम्मोरलिटी को प्रोमोट करते हैं।

‘उन्हें अपना मोल मिले तो तुम प्रसन्न हो जाओगे, जब कि यह  पोशीदा वेश्यावृत्ति होगा?’

‘‘उपभोक्तावाद ने परिभाषाएं बदल दी हैं। कभी गुलामों की बोलियां लगती थीं, अब खिलाड़ी खुद बिकने के लिए खड़े हो जाते हैं और गाहक न मिला तो अपना बल्ला तोड़ देते हैं। तुम जिसे पोशीदा वेश्यावृत्ति कह रहे हो उसी का विस्तार हुआ है धन की हवश में। अंगप्रदर्शी माडेलिंग को क्या तुमने इस नाम से पुकारा। यही पोशीदा वेश्यावृत्ति वनांचलों को  ईसाइयत के माध्यम से अमेरिकी कूटक्षेत्र में बनाने चालू के लिए चालू रही है। यही उस मुहिम में रही है जिसमें तुम भौगोलिक रूप में देश को बाँटने के बाद, रेवड़ियों के लोभ में, मनोवैज्ञानिक स्तर पर बाँटने को तत्पर हो गए।“

“बात कोई भी हो, तुम उसे घसीट कर मेरे उूपर जरूर जाओगे। कमाल है यार।“

“तुम्हारा एक अपराध हो तो गिनाकर छुट्टी पा लूं। यह तुम हो जिसने मुसलिम समुदाय की ऐसी छवि बनाई और उसे प्रसारित किया है कि अल्ला ताला ने उसे बारूद से बनाया और हिन्दुओं के ईश्वर ने उसे चन्दन से बनाया जिसमें भुजंग लिपटे रहें तो भी विष नहीं व्यापता, रगड़ो तो भी सुगन्ध ही देता है और जिसको बात बेबात रगड़ कर इसका प्रदर्शन भी करते रहे हो कि ‘देखो इसने इसे भी सह लिया। अब और कड़ी परीक्षा से गुजारना होगा। बौखलाएगा कैसे नहीं। नहीं बौखलाया तो हमारी हार है।“

“हमारे नारीवादी नारी के अधिकारों की नहीं, हिन्दू नारी की यातनाओं और उनके अधिकारों की बात करते हैं। केवल हिन्दू को आधुनिक शिक्षा दिलाने की चिन्ता करते हैं। मुसलमान मदरसों में ही खुश रहेगा। मुस्लिम समाज को सचेत रूप में तुमने उनके मुल्लों और मौलवियों का गुलान बनाया है। और जिस हिन्दू समाज की उदारता, सर्व समावेशी प्रकृति को आदर्श के रूप् में प्रस्तुत करते हो, उसी हिन्दुत्व को, उसके मूल्यों और प्रतीकों को सबसे गर्हित, तुम सिद्ध करते आए हो, क्योंकि इसके लिए तुम्हें कुछ हासिल होता रहा है।’’

‘‘तुम्हें पता है तुम बहक गए हो। तुम चले थे स्वतन्त्रता की परिभाषा पर बात करने और पहुंच गए कहां।’’

“बहक तो गया पर यह समझाने के लिए कि स्वतन्त्रता के नाम पर बहुत सारी बदतमीजियां की जाती रही हैं। मनबहकी का पर्याय बना कर उसी को नष्ट करने के आयोजन होते रहे हैं। मैं कह रहा था कि स्वतन्त्रता जन्मजात नहीं मिलती, उसे अर्जित करना होता है। जन्मना स्वतन्त्र होने की बात केवल राजसत्ता के सन्दर्भ में की गई है सामान्य जीवन व्यवहार में मनचलापन नहीं, अनुशासन, संयम, कर्तव्यपालन, शिष्टाचार, स्वतन्त्रता के अनुसंगी घटक बन जाते हैं, सच कहें तो ऐसे ही गुणों से हम अपनी स्वतन्त्रता अर्जित करते हैं और गुलाम मानसिकता में इन्हीं का अभाव होता है। इस पहलू पर हम कल बात करेंगे।“

12/11/2015 5:24:48 PM

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