मोदी की चापलूसी

"देखो तुम्हारी नीयत को ले कर तो मेरे मन में कभी कोई दुविधा नहीं रही, परन्तु तुम्हारी समझ पर मुझे भरोसा नहीं।" वह कल के अपने आखिरी फिकरे की तरंग में था. 

"भरोसा तो मुझे भी नहीं है। समझ का विश्वास और भरोसे से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह कोई वस्तु नहीं है कि खरी मिल गई और रख लिया। यह प्रक्रिया है। यह निरन्तर जाँचते हुए अपने ज्ञान और अनुभव की सीमा में सही होने की ऐसी कोशिश है जिसमें कोई छोटा सा घटक भी जुड़ जाय तो पुरानी समझ का महल धराशायी हो जाता है। इसलिए इसमें अपनी ओर से हम इतना ही कर सकते हैं कि लगातार चौकस रहैं । 

जब मैने पूछा था कि तुम मोदी को क्या समझते हो, तो सोचा था तुम मेरे मन की बात कहोगे, ‘पूँजीपतियों का एजेंट’ या ‘अडानी और अम्बानी का दलाल।"

"तुमने गलत सोचा। मैं इस भाषा में बात नहीं करता, जिसमें अपरिभाषित आरोप मुँह खोलने से पहले ही समझ को धुँधला कर दें। सर्वहारावाद के चलते भाषा और संस्कृति का जैसा भदेसीकरण तुम लोगों ने किया है वैसा अनपढ़ गँवार भी नहीं कर सकते। रनिंग डाग आफ कैपिटलिज्म, ब्लैकशीप, सुअरेर बाड़ा, फासिस्ट, सैफ्रन ब्रिगेड, सैफ्रनइज़ेशन, शविनिस्ट, काउ बेल्ट, मौत का सौदागर। तुम्हारे एक बड़बोले कवि ने तो सूअर शीर्षक देकर कई कयिताएं भी लिख डाली हैं. यार, जब तुम नफरत से इतने भर जाओगे तो कुछ सोच भी सकते हो? ज्ञान तुम्हारा जितना भी अधिक हो, तुम जैसों की भीड़ तुम्हारे पास जितनी भी बड़ी हो, दिमाग ही सन्तुलित नहीं है तो तुम्हारी क्रियाएँ, प्रतिक्रियाएँ, विचार, निष्कर्ष किसी समझदार व्यक्ति को सही लग सकते हैं? क्या तुम नहीं मानते कि अपनी इन्हीं हरकतों से तुमने पूरे देश को एक विशाल पागलखाना बना रखा है जिसमें लोग अंट संट बोल रहे है, अंडबंड हरकतें कर रहे हैं और हद यह कि तुम इसी को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता कहते हो और इस भाषा और कारगुज़ारी पर भी कहीं कोई रोक न होने के बाद कहते हो तुम्हारी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता छीनी जा रही है. सारे बुद्धिजीवी तुम्हारे साथ हैं उनका अनुकरण करते हुए लंठ लोग! शिक्षा का क्षेत्र तुम्हारे हाथ मे ही रहा है, तुमसे यह सब सीखा है उन्होंने; कहीं अनुकरण में कहीं प्रतिक्रिया में। तुम्हारे रंगकर्मी तक कहते हैं हल्लाबोल और जब दूसरे कहते हैं मैं भी हल्ला बोलूँगा तो शोर मचाते हो देखो यह हल्ला बोल रहा है.”

"खैर, बात मैं भी वही कहता जो तुम कह रहे हो, परन्तु मैं कहता, मोदी पूँजीवादी विकास के पक्षधर हैं।"

"पूँजीवादी विकास से इस देश का उद्धार हो सकता है?" उसने हमलावर की तरह प्रश्न किया.

"नहीं हो सकता। छोटे से छोटे देश को भी पूँजीवादी व्यवस्था में सम्पन्नता के लिए ऐसा उन्नत तकनीकी स्तर हासिल करना होता है जो उसे प्रतिस्पर्धा में टिकने योग्य बना सके। उसे अपने से कई गुना बड़े देशों को अपना बाजार बनाना पड़ता है, तब देश खुशहाल होता है। भारत जैसे विशाल देश के लिए तो पूरी दुनिया का बाजार चाहिए, जब कि वह स्वयं दूसरों का बाजार बना हुआ है।  जिन भी विकसित देशों की कोई दिलचस्पी भारत में है, वे इसे बाजार ही मानते हैं।"

"फिर?" 

"फिर क्या? "

“अब इसके बाद तुम क्या समझते हो मोदी को?”

“युगद्रष्टा!“

“हें, हें, क्या कहा? युगद्रष्टा! इतनी खुशामद तो मोदी के चापलूसों ने भी नहीं की होगी।

“चापलूसों के पास समझ कहाँ होती है। 

“युगद्रष्टा किस अर्थ में कहा तुमने? कुछ भी तो नया नहीं किया इस आदमी ने।“

मैंने उसके प्रश्न का जवाब नहीं दिया, "उसमें असाधारण परिपक़्ता है."

"रोज़ कोई न कोई बचकानी बात कह जाता है. हँसते हँसते लोग लोट-पोट हो जाते हैं और तुम कहते हो परिपकता है."

उसे खिझाने में मज़ा आ रहा था, "और कितनी गहरी समझ है."

अब हंसाने की उसकी बारी थी. परन्तु मैं अपनी पर आमादा था, “उसके सारे आलोचक खुर्दबीन लेकर उसकी गलतियाँ तलाश कर रहे हैं और गलती के नाम पर मिलता है, ‘मोदी को अमुक घटना पर बोलना चाहिए। चुप क्यों हैं?’ मोदी को मालूम है तुम मोदी का जवाब सुनना नहीं चाहते हो, उनसे चें' बुलवाना चाहते हो। तुमने आत्मालोचन के नाम पर अपनों से भी यही कराया है. मोदी उनसे अधिक परिपक्व है. तुम्हारी चीत्कारों का उसके पास मुकम्मल जवाब हैं. मौन. जहाँ मौन बोलता हो वहाँ शब्द बर्वाद करना जरूरी नहीं।“

“मौन बोलता है। गजब है। यह कैसा मौन है भाई, जो इतना बोलता है कि किसी को समझ में आता ही नहीं  कि मौन के पीछे क्या है।"

"पीछे है लोकतन्त्र" 

हम कुछ देर तक चुप रहे. फिर मैंने ही शुरू किया. “बताओ, वह पहला आदमी है या नहीं जिसने सोचा कि इस देश को सामंती सोच और सामंती फसादों से, सम्प्रदायवाद और जातिवाद से बाहर आना चाहिए ?”

“अरे भाई वह दिखावा है. भेड़िये ने मेमने की खाल ओढ़ रखी है. सिक्का जम जाने के बाद असली चेहरा सामने आएगा. आरएसएस की कोख में पला हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता को खत्म करेगा?”

“हो सकता है तुम सही कह रहे हो. फिर भी यह बताओ वह तुम्हारे सहित सभी दलों को खत्म करना चाहता है या नहीं?”

“चाहता है, इसमें कोई शक है. पर चाहने से क्या होता है. देखो कुछ ही दिनों में सारा शीराज़ा बिखर जाएगा.” 

“तुम कुछ आगे की बोल जाते हो. मैंने सिर्फ यही पूछा था कि वह तुम सबको मिटाना चाहता है “या नहीं और तुमने मान लिया मिटाना चाहता है.”

“अब यह बताओ तुम सभी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य क्या है?”

“सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त करना.”

“और कोई कार्यक्रम?”

“यह क्या कोई छोटामोटा काम है?”

“देखो भाई, साम्प्रदायिकता को मिटाने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है. साम्प्रदायिकता मिट जाए तो तुम मिट जाओगे. इसे घेर घार कर उठाने का काम तुम कर रहे हो. तुम सभी को एक साथ साफ़ करने का सीधा तरीका है साम्प्रदायिकता को समाप्त करो. विकास का रास्ता अपनाओ. पूंजीवादी विकास सामंती कुरीतियों - जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, पिछड़ापन सबका इलाज है. तुम मानते हो उसने पूंजीवादी विकास का रास्ता अपनाया है. यदि अपने लिए नहीं तो तुम्हे खत्म करने के लिए वह सम्प्रदायवाद को ख़त्म करना चाहता है और इसीलिए मैंने उसे युगद्रष्टा कहा. उसके कहने और करने में एकरूपता है. तुम्हारी किसी बात पर किसी को भरोसा नहीं. परन्तु मैं इस बात से चिंतित हूँ कि दूसरी सभी पार्टियां ख़त्म हो जांय तो कहीं यह विकल्पहीनता तानाशाही का रूप न ले ले.  होगा यह सब तुम्हारे किये से ही यह जान लो. यह जो तुम लोग छोटे से छोटे बहाने से हंगामा खड़ा करते हो यह तुम्हारे विनाश का कारण बनेगा. उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा.

11/1/2015 7:29:21 AM

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