हम भी एक मोटी समझ रखते हैं

तुम अपने को मार्क्सवादी भी कहते हो और मार्क्सवादियों को ही अपना निशाना बनाते हो। तुम्हें विश्वासघाती माने या कुलघाती, चुनाव तुम पर छोड़ता हूँ। और कभी सोचा भी है कि हमारा साथ छोड कर एक ऐसी राजनीति का साथ दे रहे हो जो मार्क्सवाद विरोधी है सबसे अधिक गालियां मार्क्स को वे ही देते हैं. जातपांत को, कहो वर्णवाद को वही आगे बढ़ाते हैं. समाज को बांटने का काम उनका ही है, हम लोग तो समाज को जोड़ने का काम करते हैं और मुझे ही तुम्हारी उल्टी सीधी सुननी पड़ती है। गलत कह रहा हूं?”

“तुम गलत कह ही नहीं सकते। जिस दिन गलत कहने की हिम्मत जुटा लोगे उसी दिन आदमी की तरह बात करने लगोगे।“

“मैं आदमी की तरह बात नहीं कर रहा हूँ?”

“तुम माउथपीस की तरह बात कर रहे हो। जिसे तुम मार्क्सवाद विरोधी कह रहे हो वह तुम्हारी नहीं, उस मुस्लिम लीग का विरोध करता आया है, जिसकी प्रतिक्रिया में उसका जन्म हुआ था, और जिसका कार्यभार तुमने अपना लिया है।“ 

“तुम्हारे और उस संगठन के बीच कुछ गहरी समानताएँ हैं, यह तो जानते होगे?”

“हमारी उससे क्या समानता हो सकती है? हम तो उसे फूटी आँखों भी देखना नहीं चाहते।“

“गलत कह दिया। कहना चाहिए था कि हम तो अपनी आँख तक फोड़ सकते हैं कि उसे देखना न पड़े। गरज कि तुममें वह नफरत है जिसका आरोपण तुम उस पर करते हो। वे तुम्हारा विरोध करते हैं, तुमसे नफरत नहीं कर सकते, क्योंकि वे विचारो की भिन्नता और स्वतन्त्रता में विश्वास करते हैं तुम नहीं।“

“विचारों की स्वतन्त्रता ही पर तो उनका हमला है.

“विचारों की स्वतन्त्रता पर नहीं, गालियां देने की स्वतन्त्रता पर। हमला भो वे ज़बान से करते हैं कभी कभी वह तरीका भी अपना लेते हैं जो तुम हड़ताल के मौके पर काम में लाते रहे हो। ग़रज़ की इसे भी उन्होंने तुमसे सीखा।“

“और वह जो हत्याएं हुई हैं, जिन को लेकर माहौल गर्म है।“

“वे न उनके किसी सदस्य् द्वारा हुई हैं, न उनके शासित राज्य में।“

“किया तो किसी हिन्दू ने ही।“

“तो उसका विरोध भी तो हिन्दू ही कर रहे हैं। तुम हिन्दू नहीं हो क्या? विरोध करने से रोका क्या? देखो तुम किसी भी संगठन से जुड़े हिन्दू के अपकृत्य को उनके सर मढ़ रहे हो तो किसी भी संगठन से जुड़े हिन्दू के सुकृत के श्रेय से भी वंचित न करो और फर्क करना है तो होश हवास में रह कर करो। अपनी नफ़रत के कारन घालमेल मत करो।“ 

“विरोध का विरोध तो कर रहे हैं न?”

“विरोध का विरोध नहीं विरोध के तरीके का विरोध और वह भी तार्किक और न्यायोचित तरीके से। इस तरह का घालमेल वे नहीं करते, नफ़रत तुममे है तुम उसे फैलाते हो एक हिन्दू के किये के लिए उससे नफ़रत और फिर हिन्दू नाम जहां जहां दिखाई दिया उससे नफरत। वे ऐसा नही करते। ज़बान तक उनकी मीठी मिलेगी, किसी से अधिक शालीन, कड़वी है तो तुम्हारी. नफ़रत से भरी। तुम बिना गाली के बात ही नहीं करते. असहिष्णुता तुममे अधिक है।

“शिष्टाचार सीखना चाहो तो उनसे सीख सकते हो. वे कम पढ़े लिखे हैं. क़ायदे से अपना पक्ष नहीं रख पाते.  तुम्हारे पास वाग्विदों की सेना है. तुम अपने गलत को भी सही साबित करते आये हो. पर सभ्य तुमसे अधिक वे हैं.”

“तुम्हे हो क्या गया है, यार?”

“मैंने कहा था न बौद्धिक का काम सताए हुए का पक्ष लेना है। मैं उनका पक्ष ले रहा हूँ. जवाब तुम्हे देना है। गालियां देने चलोगे तो वे तर्क से टकरा कर तुम्हारे ऊपर जा गिरेंगी. सत्य के पक्ष में हूँ इसलिए तुम्हारे वाग्विदों की पूरी फ़ौज़ को अकेले चुनौती देता हूँ। तर्क और प्रमाण के साथ आओ और मुझे गलत साबित करो। गलत साबित हो गया तो भी मेरी जीत होगी क्योंकि गलती समझ में आ जाएगी और सुधार कर लूँगा।”   

“छोडो वह बात। तुम तैश में आगये हो। हाँ, समानता की क्या बात कर रहे थे तुम। वह बताओ।“

“तुम्हारी पार्टी का और उसका जन्म एक ही साल में हुआ था, 1925 में। एक ही ऐतिहासिक परिस्थिति से, एक ही विक्षोभ के भीतर से। दोनों में ऐसे लोग थे जो कांग्रेस से जुड़े रहे थे, इसलिए विदेशी शासन से मुक्ति चाहते थे और कुछ समय तक कांग्रेस के अधिवेशनों में भाग भी लेते रहे थे। दोनों ने कांग्रेस द्वारा तैयार की गई ज़मीन में अपनी अलग खेती शुरू की थी। दोनों जात-पांत विरोधी थे परन्तु देानों में सवर्ण ही लगातार हावी रहे।“ 

“नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में ऐसा नहीं कह सकते।“

“मैं क्या कहूँगा। मेरे पास तो अध्ययन भी कम है, अक्ल भी कम। यह तो बाबा साहब ने अनुभव किया था।“

“बाबा साहब की वजह दूसरी थी। वह समझते थे कि दलित समाज की पेट की भूख उतनी ही प्रबल है जितनी आत्मा की भूख। उसे एक धर्मव्यवस्था चाहिए जिसमें वह इसकी पूर्ति कर सके। इसलिए उन्होंने सोच-विचार कर बौद्धमत को अपने अनुकूल पाया था। हमारे यहाँ ईश्वर के लिए जगह नहीं थी।“

“यह अर्धसत्य है। तुम्हारे संगठन में सभी नहीं तो लगभग-सभी कुलीन थे। दबे पिछड़ों को अपनी फ़ौज में भरती करना चाहते थे पर उनके साथ नहीं थे वर्ना बाबा साहेब को अपनी और लाने का प्रयत्न करते.  समझाने का प्रयत्न करते की ऊंची जातियां ही नहीं उनका ईश्वर भी दलितों को दबा कर रखता है। नाम सर्वहारा का लो या अल्पहारा का, उनके सपने कुलीनतान्त्रिक थे। जीवनशैली अभिजनवादी थी।  उनके निजी जीवन और सार्वजनिक चेहरे में सीधा विरोध था। कभी मौका मिले तो पढ़ना ध्यान से राज थापर की वह किताब। धुन्ध छँट जाएगी।“ 

वह हँसने लगा, “तुम समझते हो मैंने पढ़ा नहीं है।“

“पढ़ा तो हजम नहीं कर सके। उसकी किसी ने आलोचना भी नहीं की। रास नहीं आती थी तो उसे भूल भी गए। ऐसा न होता तो तुम भी मान लेते कि तुम्हारी पार्टी के खाने के दाँत और थे, दिखाने के दाँत और ।“ 

“तुम डिस्टार्ट कर रहे हो।“

“इसीलिए तो कह रहा हूँ कि जिस किताब को तुम भी पढ़ चुके हो, उसकी ही एक इबारत को देखो तो सहीः

I understood little of it myself moving naturally and effortlessly, almost sleepwalking, towards the communists, who were as much part of the social elite of Bombay at the time as anyone else. P. 6.  

“आरएसएस मोटे तौर पर बाहर भीतर एक समान थी और इसलिए अधिक अरक्षित।“

“अरक्षित। तुम यह क्यों भूल जाते हो कि ब्रितानी शासन में उस पर कभी कोई रोक-टोक नहीं लगी जब कि हमारे संगठन को भूमिगत रहना पड़ता था।“

“वह इसलिए कि वे शान्तिप्रेमी थे, तुम उपद्रवी।  उनकी जड़ें भारत में थीं, तुम्हारी बाहर। वे अपनी समझ से काम कर रहे थे। तुम दूसरों के सिखाने पर। सच तो यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी के पीछे भी ब्रितानी बुद्धि ही काम कर रही थी। वहाँ जो भी पढ़ने जाता वह मुसलमान हुआ तो कट्टर लीगी बन कर आता था और हिन्दू हुआ तो कच्चा पक्का कम्युनिस्ट।

“हाँ, तो समानता की बात तो रही गई। दोनों को बहुत अनुशासित दल माना जाता रहा है जिसका अर्थ है दोनों से जुड़ने वाले सोचना बन्द कर देते हैं और फैसला मानने की आदत डाल लेते हैं। उनकी स्वतन्त्रता उसी सीमा तक रहती है जिस सीमा तक सिखाए को भूल जाने के कारण उसे दुहराते समय अपनी इबारतें गढ़ने को लाचार होते हैं।

“परन्तु दोनों में जो सबसे बड़ा अन्तर है वह यह कि वे खंडित मानवता की बात करते हैं और तुम महामानवता के सपने दिखाते हो इसलिए हमारे सर्वोत्तम प्रतिभा सम्पन्न तरुण तुम्हारी ओर आकर्षित होते रहे हैं, जब कि उनके साथ मोटी समझ के लोगों का समूह था। वे गूंगे थे तुम वाचाल।

“परन्तु देश का जितना अहित तुमने किया है उसका शतांश भी उन्होंने नहीं किया होगा।

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