अस्पृश्यता – 21

"यह बताओ रोहित वेमुला के बारे में तुम क्या सोचते हो"

"उस पर मैं कुछ नहीं सोचता। केवल वह वेदना अनुभव करता हूं जो तुम्हें न कभी हुई होगी, न होगी। तुम राजनीतिज्ञ हो, तुम पक चुके हो। तुम किसी की वेदना नहीं समझ सकते, पर उसका कारोबार कर सकते हो। और यदि महत्वाकांक्षी हो तो अपने देश और समाज का भी सौदा कर सकते हो।"

वह तिलमिलाया और कुछ कहने को हुआ, मैंने उसे बोलने का मौका ही न दिया, ‘’देखो, जो वेदना अनुभव करता है वह नगाड़े बजा कर दुख प्रकट नहीं करता। इतनी जल्द एक्शन में नहीं आ जाता। उसे कुछ समय तो उस सदमे को बरदाश्त करने में और फिर समझने में लगता है और फिर जब समझ जाता है तो भी उस वेदना को व्यक्त करने के लिए भाषा व्यर्थ लगती है। देखो, कुछ विषय और समस्याएं ऐसी होती हैं जो तुम्हें मूक और बधिर कर देती हैं, दृष्टिहीन भी। तुम जो अनुभव करते हो उसे किसी से साझा तक करना उस पीड़ा का अपमान लगता है, जिसे तुम अकेले भोगना चाहते हो, या जिसे उसी वेदना से गुजरने वाले अकेले सहना चाहते हैं। जबान से शब्द नहीं निकलते और शिष्टाचारवश निकलते भी है तो वे आह की वाचिक अभिव्यक्ति होते हैं जिसमें शब्दों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। आवाजें कानों में पड़ती हैं, पर सुनाई नहीं देतीं, नगाड़े की चोट की तरह कान के पर्दे पर पड़तीं है पर सार्थक नहीं लगतीं। आँखों के सामने के लोग आखों के पर्दे पर बिंबित होते हुए भी दिखाई नहीं देते। यदि तुम मानव वेदना और संवेदना की भाषा समझ सको तो पहला काम तुम यह करोगे कि राजनीति छोड़ दोगे। उससे तुम्हेंं घृणा हो जाएगी, क्योंकि वह नैतिक पतन की वह पराकाष्ठा है जिसमें कुछ भी गँवा कर व्यक्ति जो कुछ पाना चाहता है उसे ले कर ही रहता है। इन्सानियत गँवा कर भी, हैवानियत अपना कर भी। कमीनेपन की सभी परिभाषाएं राजनीतिक व्‍यवहार के सामने तुच्छ, पड़ जाती हैं। परन्तु त्रासदी यह कि संवेदनाओं और मानवीय वेदनाओं के संवाहक होने का दावा करने वाले स्वयं अपने क्षेत्र की पवित्रता और स्वायत्‍तता का सौदा करते हुए साहित्य और कला की राजनीति करने लगते हैं। इन्हें मैं मजमेबाज कलाकार मानता हूँ जिनकी साख मजमों, उत्सवों, समारोहों और आयोजनों के बिना बनी रह ही नहीं सकती। इसलिए मैं इस संवेदनशील मसले पर कुछ नहीं कहना चाहता। तुम्हें पता है कलबुर्गी की हत्या पर बात करने को मैंने इसलिए टाल दिया था कि उसकी विवेचना में जाना कलबुर्गी की दुबारा हत्या‍ करने जैसा होता या उनके हत्यारों का साथ देने जैसा होता, इसलिए मैंने कहा था, इसके संगत पहलुओं से गुजरे बिना उस पर बात नहीं की जा सकती। अभी तक उसका साहस नहीं बटोर पाया। मैं उन बहादुर लोगों की हिम्मत की दाद देता हूँ जो तलवार तान कर खड़े किसी शिकार की प्रतीक्षा करते हैं और उस पर प्रहार करते हुए ललकारते हैं, देखो मैंने यह कर दिखाया। यह मुझे दोहरी पीड़ा देता है क्योंकि ऐसा करने वाले जो कुछ करते हैं वह कला और साहित्य या विचार की रक्षा की चिन्ता से ही करने का दावा करते हैं, परन्तु काम कारोबारियों का करते हैं। इसलिए मैं इस पर अभी कुछ कहना नहीं चाहूँगा।"

‘’तुम अस्पृश्यता पर लगातार इतनी बकवास करते आए हो, और जब परीक्षा की घड़ी आई तो मौन साधने की बात कर रहे हो। अपना पक्ष तो तुम्हें रखना ही होगा, वर्ना हम कहेंगे, तुम हत्यारों का समर्थन करते हो।‘’

’’तुमने नेहरु की आत्मककथा पढ़ी है या नहीं ।‘’

’’यार इसमें नेहरू को क्यों घसीटते हो? पढी हुई किताबों का क्या सब कुछ याद रहता है? मैं नहीं जानता तुम उसकी बात क्यों कर रहे हो।‘’

’’देखो इसमें दंडी मार्च के विषय में एक बड़ी रोचक बात दर्ज है। लंबे अरसे से, कहो, चौरी चौरा कांड के बाद से कांग्रेस शिथिल पड़ गई थी। कारण, गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। एक दिन विचार हो रहा था कि हम निष्क्रिय पड़े हैं, हमें कुछ करना चाहिए, हरकत में आना चाहिए अन्यथा हम कहीं के न रह जाएँगे। लोग तरह-तरह के सुझाव देते रहे, समझ में नहीं आ रहा था क्या करें। गांधी जी थोड़ी देर के लिए अलग चले गए और फिर लौटे तो हाथ की चुटकी में नमक। उन्होंने कहा समस्या का समाधान मिल गया। लोगों ने पूछा क्या? बापू ने दिखाया नमक । कहा नमक बनाएंगे और यह सुन कर दूसरों को अपनी हंसी रोक पाना मुश्किल था।

किताबों से अपने देश को जानने वाले किताबों के देश को जानते हैं, उसकी मिट्टी को नहीं जानते, उसकी संवेदना को नहीं जानते। गांधीजी ने 1 साल का समय भारत भ्रमण करते हुए भारत को समझने में लगाया था और वह अपनी वेदना और संवेदना के साथ भारतीय समाज से जुड़े थे, भारतीय इतिहास से जुड़े थे और भारत के मंगलमय भविष्य से जुड़े थे। आज का संकट यह है कि हमारे पास किताबों से देश को जानने वालों की संख्या बहुत अधिक है और वे ही हर चीज को नियन्त्रित कर रहे हैं। उस समय की भी दशा आज से बहुत भिन्न न थी। कांग्रेस वकीलों बैरिस्टरों, और अमीरों की पार्टी थी जिसे गांधी ने ज़मीन की गंध से परिचित तो कराया था, जोड़ नहीं पाए थे। दंडी मार्च से ऐसा भूकंप आया जिसे सब ने देखा। नेहरू जी ने गांधी की दूरदृष्टि और अपने जैसों की नादानी को रेखांकित करने के लिए इसका हवाला दिया है।

‘’मैं इसके व्याज से दो बातें कहना चाहूंगा। पहली बात यह है कि जो लोग राजनीति करते हैं उनको देश और समाज से अधिक अपने आंदोलन की चिंता रहती है। मैंने गांधी और नेहरू का प्रसंग इसलिए उठाया कि यह स्पष्ट कर सकूँ कि ऐसा करने वालों के प्रति मैं व्‍यक्ति के रूप में तुच्छता का आरोप नहीं लगा रहा। न मैं यह कहना चाहता हूं उनमें समझ की कमी है। मैं सिर्फ यह ‍दिखाना चाहता हूं कि आन्दोलन करने वाले अपने आन्दोलन को जारी रखने के लिए किसी दुर्भाग्य या दुर्घटना का साधन के रुप में इस्तेमाल कर सकते हैं। जरूरी नहीं किसी दुर्घटना के होने पर वे आहत भी हों। वे आहत होने का नाटक करते हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

''यह बताओ तुम्हें इस पूरी घटना का सच-झूठ मालूम है या ऐसे ही कूद पड़े? तुम स्वयं क्या मानते हो ?’’

‘’हम लोग तो पहले ही बता चुके हैं कि यह आत्महत्या नहीं हत्या है।‘’

"तुम लोग अपना शब्दकोश कब निकालोगे? वह कोश जिसमें शब्दों के अर्थ लुप्त हो जाएंगे और आकांक्षाएं अर्थ का निर्धारण करेंगी। हर शब्द कामधेनु बन जाएगा, जो चाहो फल पाओ। तुमने उसके आत्महत्या से पहले लिखे गए पत्र को पढ़ा है? ध्यान से पढ़ा है या जो पढ़ना चाहते थे उसे उसमें डाल दिया है? क्या सोचा इतना मेधावी, इतना संवेदनशील, दूसरों की भावनाओं का इतना सम्मान करने वाला, असाधारण मेधा का यह युवक अपने आगे पीछे कैसी-कैसी कहानियां छोड़ गया और फिर भी किसी को दुख नहीं देना चाहता। किसी को अपने निर्णय के लिए दोष नहीं देना चाहता।"

‘’तुम कहना क्या चाहते हो?’’

"देखो मैं अकेला ऐसा व्यक्ति हूं जो उसके साथ उसकी भावनाओं के साथ-साथ उन वेदनाओं से गुजरा हूं जिनमें भाषा चुक जाती है। बोलना बर्बरता प्रतीत होती है। मैं उसे केवल उसके पत्र के माध्यम से जानता हूं उस पत्र को पढ़कर मैं रोया हूं एक ऐसी असाधारण प्रतिभा का युवक इतना संवेदनशील व्यक्ति जो मरने के क्षण में भी किसी को दुख देना नहीं चाहता, किसी को अभियुक्त बनाना नहीं चाहता, उसको हमने खोया है। देखो तुम्हारे हाथ उसका पत्र नहीं लगा, सिर्फ उसकी लाश लगी है, जिसका किन किन रुपों में इस्तेमाल किया जा सकता है यह तुम जानते हो। तुमसे अच्छी तरह शवभक्षी पशु-पक्षी जानते होंगे जो राजनीति तो नहीं करते पर एक जरुरी काम अवश्य करते हैं।"

‘’ उसके पत्र को फिर से ध्या न से पढ़ो। वह मोहभंग का पत्र है। अपने अब तक के किए के गलत सिद्ध होने का, जो विचार और आवेग भरे गए थे उनकी व्य र्थता के बोध के कारण भीतर से खाली हो जाने और अब जीवन के ही व्यार्थ हो जाने का पत्र है। यह तुम्हा्री कुटिल और देशविमुख, समाज विमुख राजनीति पर आर्तनाद है। उसे पढ़ो, उसे आवेश में ला कर जो कुछ कराया गया उससे आहत होने का दस्तावेज है।‘’

‘’तुम उसके कुछ पहलुओं को समझ ही नहीं पाए।‘’

‘’पहले जो मैंने कहा उस पर विचार करो और फिर किसी दूसरे पहलू पर बात करेंगे।‘’

२०/०१/१६ २३:३४:५१

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