अस्‍पृश्यता – 10

‘तुम इतनी जल्द घबरा क्यों जाते हो! बीच में ही उठ कर खड़े हो गए, दिमाग खराब हो गया! जो है ही नहीं वह खराब कैसे हो जाएगा। सचाई को देखने से कतराते हो, और दुनिया बदलने को लट्ठ लेकर खड़े हो जाते हो।‘

‘सच कहो तो मुझे अभी तक यकीन नहीं आता कि ईसाइयत का चरित्र इतना बर्बर है! वह तो दूसरे समाजों को ही बर्बर बता कर उनका उद्धार करने चल पड़ती है।‘

‘और जानवर बना कर छोड़ देती है। अभी तो मैंने परिचय कराना शुरू किया था, आगे जो कहने जा रहा था, उसे तो तुम झेल ही नहीं पाओगे। '

^’इससे बुरा क्या हो सकता है।‘

‘कल की कतरन में आज इसे भी शामिल कर लो तो ईसाइयत के उस चेहरे का पता चल जायगा जो कभी अपने असली रूप में और कभी मानवतावादी मुखौटा ले कर प्रकट होता रहा है:  


‘तुम्हारा मतलब है जिन चीजों के लिए हम इस्लाम को दोष देते रहे हैं, वे इस्लााम में ईसाइयत से आई हुई हैं।‘

मैंने कुछ कहा नहीं, उसकी हैरानी का मजा लेते हुए, कुछ देर हँसता रहा, फिर खिन्न स्विर में कहा, ‘ईसाई उन्माद का सबसे अधिक शिकार महिलाएँ हुईं। कितनी अनिन्द्य युवतियों को मन को मोहित करने वाली (enchantress) जादूगरनियॉं कह कर उनकी हत्या की गई इसका कोई हिसाब नहीं । पादरियों की इस उद्दंडता का विरोध करने तक का साहस नहीं था किसी में, क्योंकि विरोध करने वाले को भी जादूगर कह कर मौत के घाट उतारा जा सकता था। जानते हो फ्रांस में एक नहर या खाई की खुदाई करते समय एक विचित्र पर्त मिली जो कई मील तक फैली थी और वे उछल पड़े कि भूनिर्मिति की यह नई खोज सिद्ध होगी, पर जब पर्त की पूरी छानबीन की गई तो उसमें जहाँ तहॉं आदमी के बाल, नाखून और हड्डियॉं खोपडि़याँ मिलीं। इसे भी एक लेखक ने विचहंटिंग का प्रमाण माना था। परन्तु विचहंटिंग इतने बड़े पैमाने पर नहीं होता था, इसलिए मेरी समझ से यह था कैथर संप्रदाय को निर्मूल करने वाले पोप इन्नोसेंट तृतीय द्वारा चलाए गए अभियान का प्रमाण। कैथर मत मानने वालों का पूरी तरह सफाया कर दिया गया था। जिन शहरों में यह प्रचलित था उनके निवासियों की उम्र और लिंग का भेद भाव किए बिना कत्ल करके शहर को जला दिया गया था। यह तेरहवीं शताब्दी की घटना है। यूरोप जब आज की सफलता के कारण अपने बुद्धिवादी होने को अपना सनातन चारित्रिक गुण बताता है तो उसे अपनी बदहवासी और धर्मान्धों के सम्मुख अपनी लाचारगी के वे दिन भूल जाते हैं।‘

‘तुम कह रहे हो तो मान लेता हूँ, पर ऐसा हुआ होगा, ऐसा हो सकता है, यह विश्वास नहीं हो पाता।‘

‘विश्वास तो मुझे नहीं होता कि तुम जैसे पढ़ाकू आदमी को आज तक विचहंटिंग का अर्थ और इतिहास नहीं पता है और दूसरी यातनाओं को छोड़ भी दो तो चेस्टिटी बेल्टं का मतलब नहीं जानते, इसकी त्रासदी से परिचित नहीं हो।‘

‘ईसाइयत का यह राक्षसी चेहरा तो सचमुच डरावना है।‘

‘नहीं, डरावना नहीं है, क्योंकि इसने अपने को इतना बदला है कि यह तुम्हारे होली की सी मौज के अनुरूप एक वैलेन्टाइन डे मना कर तुम्हा्रे युवको युवतियों को लुभाने की कोशिश करता है और तुम उसका विरोध करते हो तो डरावना चेहरा तुम्हाारा लगता है।

‘मैं ईसायइत के चरित्र से तुम्हें इसे इसलिए परिचित नहीं करा रहा हूँ कि तुम ईसाइयत से नफरत करो। इतिहास में ऐसी असंख्य घटनाऍं हैं जो हुई हैं, होती रही हैं, पर जिन पर विश्वास न हो पाए कि मनुष्य ऐसा भी कर सकता है। इतिहास के छात्र को नफरत करने का अधिकार नहीं है, पैथोलोजिस्ट के लिए गन्दगी भी नफरत के लिए नहीं होती, कारण को समझने और उससे बचने का उपाय तलाशने के लिए होती है। यही भूमिका किसी भी विश्लेषक की होनी चाहिए। इतिहासकार की तो खासतौर से, क्योंकि उसके सामने पूरे समाज और मानवजाति की व्याधियों को पहचाने और उनसे शिक्षा ग्रहण करने-कराने की जिम्मेवदारी होती है। इतिहास की किताबें लिखने वालों के बीच भी तुम्हें बहुत विरल ही ऐसे इतिहासकार मिलेंगे जो यह तक जानते हों कि उनका दायित्वच क्या है। हमारे देश में तो ढूढ़े न मिलेंगे।'

‘अरे भई, एक अकेले तुम तो हो।‘ उसने फिकरा कसा।

‘मेरा सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य मैं इतिहासकार नहीं हूँ या हूँ तो केवल इतिहासकार नहीं हूँ। देखो पहली बात तो यह है कि तुम्हें ईसाई मत या ईसाइयत को पोप के धार्मिक साम्राज्यवाद से, और आज के पूँजीवादी और वर्चस्ववादी दासता से अलग करना होगा। एक धर्म के रूप में इसाई मत मानवतावादी है। एक तन्त्र के रूप में, पोप के साम्राज्यवाद के रूप में, या पूँजीवादी हथियार के रूप में यह यह मानवद्रोही और ईसाद्रोही है और जिस भी देश में है उसके प्रति भी द्रोही है। उसकी आस्था का केन्द्र् अन्यत्र है और यह उसी का औजार है। वह बाइबिल हाथ में लेकर शैतान के घर पानी भरता है ।

'सोचो, ईसा पश्चिम के नहीं थे, वह पूरब के थे, कम से कम दिमाग से। उनके जीवन के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है, उनका जन्म और जन्मतिथि तक । जिस बेथेलहेम में उनका जन्म दिखाया जाता है, वह तो चौथी शताब्दी में गैर ईसाइयों से दखल किया गया था।

The Church of the Nativity was built over this place in 326 when Emperor Constantine decided to declared Christianity as the official religion of the Roman Empire....Since then, pilgrims from all around the world started coming to Bethlehem to visit this place. The place where Christianity started." Chris Mitchell, ‘Do We Realy Know Where Christ was Born, 12-25-2015.

ईसा का पालन-पोषण अहिंसावादी परिवेश में हुआ था और उनके आदर्श अपरिग्रहवादी और अहिंसावादी हैं जब कि जिस परिवेश को वह बदलना चाहते थे वह चरवाही का था और चरवाहे चाहे वे घास के मैदान के हों या रेगिस्ताोन के, या यहॉं तक कि उस परिवेश के जिसमे अहिंसा का जन्म हुआ, वे हिंसा और छीना झपटी के बिना सुखी रह नहीं सकते । ईसा की हत्या में सहायक कथित रूप में उनके ही शिष्य, पैसे के लोभ में बने। ईसाई उन्हें यहूदी मान कर यहूदियों से नफरत करते हैं, परन्तु ईसा को मानने वाले तो ईसाई हुए, यहूदी कहॉं रह गए और यहूदी तो ईसा भी थे।‘

‘जानते हो, मैं तुम लोगों से इसलिए खार खाता हूँ कि तुम लोग हर चीज का मूल भारत में तलाशने या दिखाने लगते हो। इंडोफीलिया भी एक व्याधि है, भले इसका रोगी इस पर गर्व करे।‘

‘ईसा का नाम क्याड था, ईसा या क्रिस्ट /क्राइस्ट । एक जमाना था जब वेबर आदि ने भारत का सब कुछ यूरोप से आया सिद्ध करने की झोंक में यह बहस चलाई थी कि कृष्ण का ईश्वरत्व और नाम क्राइस्ट से प्रेरित है, पर यहाँ तो तिथि से ले कर उपदेश तक सब उल्टा दीख रहा है। ईसा या ईश्वर का पुत्र, क्रिस्ट या कृष्ण तुम्हारी ही समझ से। यह मैं मात्र विनोद के लिए याद दिला रहा हूँ क्योंकि इस पर जितनी गहरी पड़ताल होनी चाहिए मैंने की नहीं, पर उनका उपदेश और ईसाइयत का संघ तो बौद्ध मत से इतना प्रभावित है कि कोई इसे नकारता भी नहीं।

'ईसा कहते हैं, पड़ोसी को प्यार करो, जिस ईसाइयत को हम जानते हैं वह कहती है अपने पड़ोसी को खत्म कर दो। ईसा कहते हैं, सुई के छेद से उूँट का गुजरना संभव है, परन्तु धनी आदमी का स्वर्ग में जाना संभव नहीं। ईसाइयत साम्राज्यवादियों और पूँजीवादियों का औजार बनी हुई है। शिक्षा, स्वास्‍थ्‍य जैसी लोक हितकारी संस्थााऍं भी यदि ईसाइयों के हाथ में गईं तो गरीबों को उनसे वंचित होना ही पड़ेगा । ये दलितों और पीडि़तों के हितैषी हो सकते हैं। ईसा सत्य की बात करते हैं, ईसाइयत कपटजाल से भरी हुई है। ईसा सैल्वेशन या मुक्ति की बात करते हैं और मुक्ति/मोक्ष भारतीय चिन्ताधारा की उपज है जो पश्चिमी दिमाग में पच नहीं पाता।

‘इसलिए ईसाइयत में सदा दो तरह के ईसाई रहे हैं। एक वे जो बाइबिल में विश्वा‍स करते हैं, दूसरे वे जो बाइबिल का इस्तेामाल करते है। पहली कोटि को रूढि़वादी कह सकते हैं और दूसरे को अग्रधर्षी।

‘अग्रधर्षी की जगह प्रगतिशील नहीं कह सकते थे। तुम्हें जिह्वामरोड़ शब्द ..'

मैंने बीच ही में टोक दिया, ‘प्रगतिशील नहीं, अग्रधर्षी, प्रोग्रेसिव नहीं ऐग्रेसिव। प्रगतिशील तो पुरातनवादी ईसाई ही रहे हैं, ईसाइयत के सिद्धान्तों में विश्वास करने वाले और अमल में लाने वाले। दक्षिण अमेरिका और अमेरिका में अन्याय, भेदभाव और दास प्रथा के विरुद्ध लड़ने वाले इन्हीं परंपरावादी ईसाइयों में से रहे हैं। इनकी भूमिका सचमुच क्रान्तिकारी रही है। संख्या में ये रोमन काल से ही हाशिये पर ही रहे हैं। अग्रधर्षी इन्हें मिटाने पर तुले रहे हैं।

‘मैं कहना यह भी चाहता हूँ कि इतिहास में ऐसे दौर भी आते हैं और आते रहे हैं जब जिन्हें तुम पुरातनपन्थी कहते हो उनकी भूमिका क्रान्तिकारी होती है और क्रान्ति का नारा देने वालो की भूमिका विनाशकारी। ‘

’आज पोते को स्कू‘ल छोड़ने की ड्यूटी बजानी है, देर हो रही है।‘

’फिर कल सही।‘

०३ जनवरी. २०१६

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