भूले से उसने सैकड़ों वादे वफा किए

‘‘मैं तो यही समझता था कि स्वर्ग के देवता भी आदमी बनने को तरसते हैं, और तुमने तो आदमी को जानरों से भी नादान बता दिया।’’

‘‘आदमी बनने को तरसते तो आदम को स्वर्ग से निकाल देते?’’

‘‘क्योंकि वह शैतान के कहने में आ गया था।’’

‘‘जानते हो शैतान किसे कहते हैं? जानते हो शैतान को सर्प के रूप में क्यों कल्पित किया गया।’’

वह चुप रहा।

‘‘जानते हो वह स्वर्ग कहाँ था।’’

‘‘कहीं पूरब में।’’

‘‘जानते हो पश्चिम एशिया के पूरब में किस देश में देवताओं का निवास था?’’

वह कुछ सोचने लगा, ‘‘शायद बहरीन में या कुवैत में या कुछ ऐसा ही है जिसे सुमेरियाई दिलमुन या तेलमुन कहा करते थे।’’

“वह तो बहुत बाद का स्वर्ग है, यद्यपि स्वर्ग की तस्वीर खींचने में उसका भी हाथ था। वहाँ वे नदियाँ नहीं मिलेंगी जिनको स्वर्ग में बहता बताया जाता है। इसलिए जिस स्वर्ग का बाइबिल में संकेत है वह कृषि के आविष्कार और प्रसार के चरण का स्वर्ग है। सुमेरियाई स्वर्ग व्यापारिक युग का स्वर्ग है जो सुमेरिया से तो पूरब में हैं, पर उस स्वर्ग से अलग है। हमारे स्वर्ग हिमालय की शृंखला के पार उत्तर में कहीं थे। ठीक उत्तर में या पश्चिम उत्तर में कहना कठिन है लेकिन हैं ये भी नागर चरण के स्वर्ग क्योंकि इन्द्र की अलकापुरी या आमोद-प्रमोद से भरी नगरी की कल्पना की गई है, स्वर्ग के रास्तों की रखवाली करने वाले, आदमी जैसी चैकन्नी नजर से रखवाली करने वाले, और जाहिर है, किसी सन्दिग्ध को देख कर भौकने वाले कुत्तो ‘‘उदुम्बलौ सारमेयौ नृचक्षसः’ की कल्पना की गई है जो तत्कालीन शान्ति-व्यवस्था पर प्रकाश डालती है। और तनिक भी प्रमाद होने पर इन्द्र के द्वारा दंडित हो कर निकाले जाने वाले यक्षों की भी कल्पना है ही। और जानते हो यह जो ईरान का सूसा नगर है उसका पुराना नाम क्या था, कम से कम संस्कृत का नाम, सुखा नगरी था। वही इन्द्र के आनन्द वाली नगरी। यह अकेली ऐसी नगरी नहीं थी। ईराक के धुर उत्तर में मित्र पूजकों या मितन्नियों का वसु नाम की दजला की सहायक नदी के किनारे वसुकनि या वसु की खान नाम की नगरी के बारे में कहा है, ‘वसोर्धाराणां एन्द्र नगरम्’। तो हमारे स्वर्ग उन सम्यताओं के भीतर तक धँसे थे। यार अब याददाश्त धोखा दे जाती है। हो सकता है जिसे मितन्नी कहा वह कस्सी या कस्साइट निकले, पर थे वे आर्य भाषी ही।“

वह माथा खुजलाने लगा।

‘‘अच्छा यह बताओ, साँप को एक मानव समुदाय, कहो उपद्रवी मानव समुदाय के रूप में कहाँ के प्राचीन साहित्य में दिखाया गया है और नाग उपाधि वाले जन आज भी कहाँ पाए जाते हैं?’’

‘‘मुझे डर है कि तुम, जैसी कि तुम्हारी आदत है, यहाँ भी कह दोगे, भारत में ।’’

‘‘तुम्हारा डर सही है। यार, तुम जब डरते हो तो बिल्कुल सही नतीजे पर पहुँचते हो; जब आत्मविश्वास का स्तर ऊपर चला जाता है तो केवल मूर्खता की बातें और मूर्खता के काम करते हो। हमारी जानकारी में पूरब में अकेला एक ही भूभाग है जिसकी जातीय स्मृति में देवयुग की कल्पना है और उसको कृषि कर्म से जोड़ा गया है।“

‘‘कृषि कर्म से? तुम तो अभी कह रहे थे, वे आमोद-प्रमोद के नगर हैं।“

‘‘मैंने यह भी तो कहा कि विकास के विविध चरणों के स्वर्ग रहे हैं, जैसे आज मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों का स्वर्ग अमेरिका बना हुआ है, कल तक सोवियत संघ था, कुछ के लिए चीन हो गया था। मैं जिस देवयुग की बात कर रहा हूँ उसका दावा था कि उसने खेती का आरंभ किया। अपना स्वर्ग बनाया। जानते हो, जानते  तो होगे, एक बार मैंने बताया था तुम्हें कि देवता का मतलब होता है आग लगाने वाला, देव का मतलब आग होता है, और देवन का आगजनी। ब्राह्मण का भी यही अर्थ होता है। तो जिन लोगों ने खेती के लिए झाड़ झंखाड़ जला कर जमीन को साफ किया वे अपने को देव या ब्राह्मण कहते थे। ये आग लगाने में बहुत तेज होते हैं, जानते हो न। बोलें तो भी आग लग जाती है, झगड़ा लगाने के लिए आग लगाना मुहावरे में चलता है न? और ब्राह्मणों ने तो खुद ही अपने बारे में लिख रखा है कि अग्नि मुखो वै ब्राह्मणः।’’

“तुम ब्राह्मणों को गाली देने के लिए इतनी लम्बी पैंतरेबाजी कर रहे थे?”

‘‘नहीं, जो ब्राह्मणों को बिना सोचे समझे गाली देते रहते हैं उनको गाली देने के लिए। यह बताने के लिए जब हमारे पास लेखन के साधन नहीं थे तब हजारों साल के इतिहास को किस तरह मिथको, प्रतीकों, विरूपित और बकवास प्रतीत होने वाले दावों के रूप में बचाये रखा गया था।

‘‘यह बताने के लिए कि तुम लोग जो तर्कवाद के नाम पर अंडबंड करते रहते हो, पुराना जो दीख गया उसे मिटाने को पिल पड़ते हो, तुम कुतर्कवादी हो। मूर्ख। उपद्रवकारी। तुम्हें पहले बहुत धैर्य से अपने प्राचीन साहित्य का अध्ययन करना चाहिए।

‘‘यह बताने के लिए कि इन अटपटे विवरणों में इतिहास के इतने निर्णायक प्रमाण छिपे पड़े हैं जो कभी कभी पुरातत्व के साक्ष्यों से भी अधिक विश्वसनीय और आश्चर्यजनक सचाइयों को उजागर कर सकते हैं। इसे समझे बिना तुम कैसे समझ सकते थे कि ब्राह्मण को भूदेव क्यों कहा जाता रहा और मार्क्सवादी होने का दावा करने के बाद भी इसके आर्थिक आधार को समझे बिना इसे ब्राह्मण की धूर्तता मान लोगे.

उससे रहा न गया, ‘‘यार मान लिया कि ब्राह्मण का अर्थ आग होता है, देव का अर्थ भी आग होता है। इतने ही पर तुम इतना उछलने लगे कि माइथालोजी को पुरातत्व से अधिक विश्वसनीय बना बैठे। तुम लोगों के साथ यही दिक्कत है। कहीं से कुछ निकाल कर उससे इतिहास बनाओगे और उस बनावटी इतिहास को प्रामाणिक इतिहास से अधिक महत्व देकर इतिहास की हत्या करने लगोगे। हँसी आती है तुम्हारी बातें सुन कर।’’

‘‘और मुझे तुम्हारी हँसी पर रोना आता है। जानते हो उस मूर्ख की कहानी जो तीन बार हँसा था?’’

वह नहीं जानता था इसलिए कहानी भी मुझे ही सुनानी पड़ी।

एक गोष्ठी में कुछ लोग बैठे थे। संयोग से उसमें एक मूर्ख भी बैठा था। बातचीत के बीच एक ने कोई विनोद भरी बात की तो सभी हँस पड़े। फिर हँसी तो रुकनी ही थी। रुकी। कुछ देर बाद वह फिर हँसा। लोग हैरान कि बिना किसी कारण के हँस क्यों रहा है। शालीनता के तकाजे से झेल गए। कुछ देर बाद वह फिर हँसा। अब तो लोगों को चिन्ता होनी ही थी कि इस आदमी को क्या हो गया है जो बात-बेबात हँसे जा रहा है। पूछा, ‘भाई साहब, आप बार-बार हँस क्यों रहे हैं।‘ उसने बताया, ‘पहली बार जब इन्होंने यह फिकरा कसा था तो मेरी समझ में नहीं आया था। आप लोगों को हँसते देख कर हँस पड़ा, पर सोचता रहा कि आप लोग हँसे क्यों थे, फिर फिकरे का मतलब समझ आया तो हँसना पड़ा। अब यह ग्लानि पैदा हुई कि जब फिकरा मेरी समझ में आया ही नहीं था तो मैं आप लोगों के साथ क्यों हँस पड़ा, तो अपनी बेवकूफी पर हँस पड़ा।‘ देखो, तुम्हारी तरह वह भी हँसता अधिक था, पर वह ईमानदार था, इसलिए उसने सत्य की खोज कर ली कि वह मूर्ख है। तुम लोगों में ईमानदारी नहीं है इसलिए यह कभी समझ ही न पाओगे कि तुम हो क्या!’’

12/13/2015 10:26:29 PM

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