अस्पृश्यता- 14

''एक घटिया सा शेर है, बहुत लोकप्रिय है, ‘असलियत छिप नहीं सकती बनावट के उसूलों से’ तुमने सुना होगा। शेर घटिया है इसीलिए तुम पर बहुत फिट बैठता है, जब तुमने घर वापसी की हिमायत की तो तुम्हारे मार्क्सवाद की असलियत उजागर हो गई।''

मैं हॅसने लगा, तो बोला क्या हुआ, बात समझ में नहीं आई।

''जब तुम यह समझाना चाहोगे कि ईसाईकरण को तुम मार्क्सवाद मानने लगे हो तो यह समझने में क्यों न आएगा कि मार्क्सवाद लीग की लीक बदल कर ईसाईयत की डगर पर आ गया है क्योंकि भारतीय मार्क्सवादियों को उसमें अधिक मालो-जर दिखाई देने लगा है। मार्क्सवाद का तो लक्ष्य ही है मार्क्सवादियों की किस्मत बदलना। मैं कहता हूं विस्तारवाद का खेल बन्द होना चाहिए चाहे वह क्षेत्रीय विस्तारवाद हो या धार्मिक विस्तारवाद । जब तक यह चलता रहेगा दुनिया में शान्ति कायम नहीं हो सकती। तुम कहते हो विस्ताारवादियों से तो हमने गुप्त समझौता कर लिया है, हिन्दुत्व को मिटाने की लड़ाई में हम तुम्हारे साथ हैं और इस एक नारे के कारण अमेरिका में तुम्‍हारी पूँछ और मूछ दोनो तन गई है। तुम्‍हारे समझौते की तरह ये दोनों भी अदृश्य हैं पर अदृश्य होने के कारण ही तनाव कुछ अधिक है। जब वे अमेरिका से लौट कर देसी लोगों को अपना परिचय देते हुए कहते हैं, ‘इंटरनेशनली रिकाग्नाइज्ड इंटेलेक्चुल' तो सुनने वाले इसके तेवर से ही धराशायी हो जाते है। क्यों, मैंने कुछ गलत कहा।''

उसको उम्मीद ही न थी कि ताबड़-तोड़ इतनी बेभाव की पडे़गी। कैमरा नहीं था, नहीं तो उसकी फोटो जरूर उतारता। उसका जो भी हो मुझे तो मजा आ ही रहा था, कहा" )देखो, मेरी सीमित समझ से मार्क्सवाद साम्राज्यवाद विरोधी है और इस समझ से भौगोलिक अग्रधर्षण हो या मजहबी अग्रधर्षण हो एक मार्क्‍सवादी को इसका विरोध करना चाहिए। धर्म मेरे लिए तो क्या, उन अमरीकियों के लिए भी हाशिए की चीज है। पता लगाओ कितने अमरीकी रोज तो दूर रविवार को भी चर्च जाते हैं तो तुम्हें हिन्दू समाज में धार्मिकता की कमी को ले कर खिन्न‍ता न होगी। जानते हो, इसका कारण क्या है?''

इसका कारण मार्क्स ने बताया नहीं फिर वह कैसे जानता। हाथ खड़े कर दिए।

मैंने कहा, ''कारण तो तुम जानते हो, बस तार नहीं जोड़ पा रहे हो। तार्किकता जितनी ही अधिक होगी, भावुकता उसी अनुपात में कम होगी। याद करोगे तो दिखाई देगा, विश्वास के बल पर कायम रहने वाले धोखाधड़ी को भी अपना हथियार बनाते हैं और ईसाइयत के इतिहास को देखो तो उसने पाखंड और धोखाधड़ी के लिए धर्मप्रचारकों से आगजनी तक करवाने से गुरेज नहीं किया। याद है तुम्हें?''

याददाश्त उसकी खराब नहीं है, याद था। सही वक्त पर सही चीज याद नहीं आती यह एक समस्या जरूर है।

इसलिए ईसाइयत की ज्ञान और विज्ञान से दो मल्‍ल युद्ध हुए। पहले में उसने इतना अन्ध विश्वास फैलाया, सच कहो तो अपनी वाहिनी समाज के उस तबके को बनाया जो शाेषित, वंचित थे ही अज्ञान के अन्धकार में पल रहे थे और अन्धविश्वासों के सहारे जीने को मजबूर थे। उनको उत्तेजित करके, अपराध की खुली छूट दे कर ही उन्होंने पुरानी ज्ञानसंपदा को नष्ट किया और उस बहुलतावादी सभ्यता को निर्मूल कर दिया, उसे पैगन नाम देकर और इस शब्‍द से और भी गर्हित कल्पनाऍं और संभावनाएं जोड़ कर उस सभ्यता को गाली देते रहे और तुम ही नहीं, मार्क्स तक उनके इन कुकृत्यो पर ताली बजाते रहे।‘’

‘’यार आवेश में तुम होश खो बैठते हो, कब का वह जमाना और कब हुए मार्क्स? वह ताली कैसे बजा सकते थ?’

’’कभी मार्क्सं और ऐंगेल्स के ईसाइयत विषयक विचार पढ़ो तो पाओगे कि वे इस बात पर सहमत हैं आरंभिक ईसाइयत की भूमिका प्रगतिशील थी, या कुछ ऐसा ही। इस समय शब्द तो दुहरा नहीं सकता, आशय ही दुहरा सकता हूं और वहॉं कोई चूक नहीं है। संभवत: इसी से प्रेरित हो कर हावर्ड फास्ट ने भी पहले स्पार्टकस लिखा, फिर बहुत सारी रचनाऍं कीं परन्तु अन्त में स्वप्नभंग हो गया और द नेकेड गॉड लिखने को बाध्य हुए।‘’

‘’यह एक विकट समस्या है, तुम जानते हो। सभ्यता का विकास मानवीयता के सिद्धान्तों का अतिक्रमण करते हुए हुआ है। नेकेड गाड फास्ट ने इतिहास की समझ में आए बदलाव के कारण नहीं, बल्कि ख्रुश्चेोव के पासापलट के बाद पैदा हुई दुविधा के बाद लिखा था। हॉं, वह भी यह मानते थे कि सताए हुए लोगों को सताने वालों को, उनकी संस्क़ृति को, उनके उस ज्ञान को जिसने उन्हें ताकतवर बनाया था और शेष समाज को पशुसुलभ, या दासता की स्थितियों में रखा था, उन्हें इस बात का हक है कि वे उसका समग्र नष्ट कर दें। इस स्वाभाविक प्रतिक्रिया को मैं समझता हूँ। तुम भी समझो, मार्क्स ने ईसाइयत का समर्थन नहीं किया था, उसके एक चरण की भूमिका की तारीफ की थी। यदि उस ज्ञान- विज्ञान के विनाश पर कोई प्रश्‍न करता तो वह भी इसको निन्दनीय मानते।‘’

’’मैं तुम्हें सिर्फ यह याद दिलाना चाहता था कि पहले तुम मार्क्स का आलोचनात्मक पाठ करो, उसके बाद समझ पाओगे कि मार्क्‍सवाद क्या है। काम समझने से नहीं चलेगा। उस पर चलना भी होगा, दैनन्दिन व्यवहार में लाना होगा। मुझे आज तक ऐसा मार्क्सवादी मिला नहीं। ले दे कर एक मैं बचा हूँ और मुझे तुम मार्क्सवादी मानते ही नहीं। तुम्हारी इस जिद की वजह से ही तो हमारी दोस्ती कायम है।

''परन्तु दूसरा मल्लयुद्ध अरबों के संपर्क में आने के बाद यूरोप में हुअा जिसमें तर्क और प्रमाण के आधार पर बाइबिल की मान्यताओं को नकारने का प्रयत्न किया गया। मगर यह तो सोचो, यह बाइबिल भी दरिंदगी के उसी दौर में लिखी गई। गनीमत यह है कि वहाँ इस बात का हवाला भी है कि किस सन्त ने अपनी ओर से क्या जोड़ा और लोग उसे भी ईसा का कथन मान कर सिर ऑंखों चढ़ाते रहे।''

''उत्ते जना में तुम अपना संयम खो बैठते हो।''

मैं जानता हूँ और जानते हो कई बार मुझे इसमें मजा भी आता है, गो यह भी जानता हूँ कि उत्तेाजना के क्षणों के कहे या लिखे हुए शब्द या किए हुए काम अपने शत्रु को हथियार सौंपने और आ बैल मुझे मार का निमन्त्र ण देने जैसा है। उत्ते जना और पागलपन में एक छोटा सा फर्क है। उत्तेजना में आप कुछ क्षणों के लिए अपना संतुलन खो देते हैं, पागलपन में यह स्था यी भाव बन जाता है। परन्तु जो बात बात पर उत्तेंजित होते रहते हैं, जिनमें कुछ सुनने और समझने का धीरज तक नहीं वे देश और समाज को क्या सँभालेंगे, अपने आप को तो सँभालना सीखें। करना क्या है, क्या कर सकते हैं, क्या आत्ममघाती है इसका निर्णय बाद में होता रहेगा।

10-1-16 23:50

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