क्षमा याचना सहित

“मैं मार्क्स के इस कथन से कभी सहमत नहीं हुआ कि ‘आज तक दार्शनिक जगत की व्याख्या करते आए हैं; जरूरत इसे बदलने की है।‘ इसमें यह निहित है कि सोच-विचार से बदलाव नहीं आता, केवल बाहुबल से ही ऐसा संभव है। 

इसकी अंतर्ध्वनि यह है कि दार्शनिकों को विश्व व्यवस्था को लेकर अब अधिक माथापच्ची बंद कर देनी चाहिए। उस विषय में जो अंतिम बात सोची जा सकती है वह सोच ली गयी है और तुम्हारे सामने है. समस्या केवल दार्शनिक की नहीं है, सभी बुद्धिजीवियों, कलाकारों की है। बुद्धि और कला से जुड़े सभी लोग अपनी कला और प्रतिभा को इसी ध्येय को समर्पित कर दें. उनका मूल्यांकन भी इसी आधार पर हो. सत्ता परिवर्तन के बाद ऎसी कोई बात न तो कही जाय न रचना के माध्यम से व्यक्त की जाय जिसमें जो कुछ भी हो रहा है उसकी आलोचना हो. यह धर्मतांत्रिक व्यवस्थाओं की ईशनिंदा के सम्मान दंडनीय होगा. जहां इस दिशा में संघर्ष किया जा रहा हो वहाँ पार्टी नेतृत्व की आलोचना न की जाय, न ही ऐसा कुछ कहा और किया जाय जो पार्टी की नीतियों के विरुद्ध या उससे हटकर हो. ऐसा करना निंदनीय होगा, क्योंकि दंडविधान अपने हाथ में नहीं है. सभी गतिविधिया राजनीति से परिचालित और उसी को समर्पित हैं. इससे एक पूर्वनिर्दिष्ट, संकुचित, एकायामी और बंजर सोच, बंजर कला, बंजर साहित्य पैदा होता है जो अपने स्वायत्त क्षेत्र को छोड़ कर ऐसे क्षेत्र का काम करने का भ्रम पालता है जो उसके माध्यम से हो ही नहीं सकता। इससे मार्क्स अंतिम दार्शनिक बन जाते है। दर्शन का काम व्याख्या करना नहीं, दुनिया को बदलना है। दुनिया को बदलने का कार्यक्रम मार्क्स ने दे ही दिया, अतः भावी दार्शनिकों को उसी का भाष्य और प्रचार करना है।“ 

“तुम्हारा अपना नजरिया एकायामी और गलत और किसी छद्म राजनीति से प्रेरित नहीं है?”

“मैं कभी अन्तिम सत्य नहीं बोलता। जितनी बार सोचता हू पिछली बात में कुछ सुधार करना पड़ता है, किसी विशेष क्षण में मैं केवल अपने जाने और समझे हुए का केवल वह कह पाता हू जो उस समय ध्यान में आता है। कुछ छूट गया तो उसी अनुपात में पूरा निष्कर्ष प्रभावित होगा। गलत भी हो सकता है. सही होने की कोशिश में बोलने वालों के पास अपना कुछ कहने को होता ही नहीं। मैं प्रयत्न करता हूँ कि मेरा विचार इकहरा न हो. इसका एक ही तरीका है - अन्य संभावनाओं की ओर ध्यान देना, दूसरे के पक्ष को समझने का प्रयत्न करना। मै बहस जीतने के लिए बात नहीं करता, गलत सिद्ध होने के लिए तैयार हो कर, उस विषय या समस्या की जो समझ है, उसे रखने का प्रयत्न करता हूँ। उसके बाद भी इकहरापन बना रहे तो दुहरा हो जाने से अच्छा है।“

“मैं अभियोग नहीं लगा रहा था, पर बात इतनी अटपटी लग रही है कि ऐसा सन्देह हुआ। तुम अपनी बात कहो।“

“जब दर्शन कार्ययोजना में बदल जाता है तो वह धर्म का रूप ले लेता है, जो पहले के धर्मो और विचार-दृष्टियों का निषेध करता है। उसका अंतिम दार्शनिक, कार्यदर्शन का प्रणेता हो जाता है। पूरे समाज को अपने दर्शन या विश्वदृष्टि को अमल में लाने और पूरी दुनिया में फैलाने का काम अपने अनुगामियों को सौंप कर वह मसीहा बन जाता है। विश्वविजय उस दर्शन को लादने के लिए होगा, प्रशासन उस दर्शन से चलेगा। लोक कितने नेक या बद है, प्रशंसा और पुरस्कार के पात्र हैं या निंदा और दंड के, यह उनकी उस दर्शन के प्रति निष्ठा से तय होगा। इसका कठोरता से पालन कराने के लिए एक तानाशाह मुल्लातंत्र पैदा होगा जो सही गलत का निर्णय करेगा। ऐसा कुछ भी कहने या करने की स्वतंत्रता किसी को नहीं दी जाएगी जो दर्शन की आधारभूत मान्यताओं से अनमेल हो। इसलिए समय बदलेगा, दर्शन के बुनियादी सूत्र नहीं। यह ठीक इसी रूप में प्रतिपादित हुआ हो या नहीं, परंतु इस स्थापना में यह निहित था। आगे चल कर हुआ भी वही। हम कह सकते हैं मार्क्सवाद दुनिया का सबसे नया, अनीश्वरवादी, पदार्थवादी धर्म है जिसकी मूल प्रकृति सामी है।

“सामी क्यों? "

"क्योंकि सामी मत अपने प्रसार के लिए हिंसा का सहारा लेते रहे हैं. दूसरे सामी मत विचार से डरते रहे हैं. देखो हिंसा का सहारा लेने वाला विचार से डरता है. इसलिए हथियार और विचार में कौन अधिक ताक़तवर है यह भी तुम समझ सकते हो और विचार को मार्क्स ने धता बता दिया. दुनिया के किसी कोने में, कहीं भी यदि में में भिन्न व्यवस्था या भिन्न विचार बचा रहा तो वह इसके लिए खतरा है. इसलिए इसे पूर्ण विश्वविजय चाहिए. इतना ही नही इसी दर से वे पुराने ग्रंथों एंड ग्रंथागारों को नष्ट करते रहे. उनके मूर्त रूपों को नष्ट करते रहे. वे इतने से संतुष्ट नहीं हो पाते की यदि हमारा विचार श्रेष्ठ है तो उसे दूसरे स्वतः मान लेंगे. उसके सही होने पर उन्हें भरोसा नही. इसलिए वे उन्हें विश्वास कहते हैं. साम्यवाद भी एक विश्वास है."

"तुम इस बात पर ध्यान नही दोगे कि यह तुम्हारा विचारक नही तुम्हारे भीतर का हिन्दू बोल रहा है?"

"हो सकता है वह भी बोल रहा हो, क्योंकि हिन्दू धर्म है विश्वास नहीं. वह विचार से डरता नहीं और अपने अस्तित्व के लिए उसे दूसरे विचारों को मिटाने की लाचारी नहीं अनुभव होती. हिन्दू शब्द को तो तुमने गाली बना रखा है उसे समझोगे कैसे."

उसकी हालत देखते बनती थी.

“कार्ल मार्क्स इसलिए बहुत सफल, पर अपनी सफलता के अनुरूप बडे़, दार्शनिक नहीं सिद्ध होते, मास अपील वाले दार्शनिक अवश्य सिद्ध होते है। वह अपने उत्साह में विचार की क्रांतिकारी भूमिका को नहीं समझ पाये। उनकी सभी प्रतिज्ञाएँ गलत सिद्ध हुईं। उन्होंने अपनी सैद्धांतिकी की कमियों के अनुरूप एक गलत विश्वदृष्टि को श्लाघ्य बनाया। इसलिए मार्क्स सपाट चिंतक लगते हैं, न तो दार्शनिक के रूप में तत्वदर्शी, न आंदोलनकारी के रूप में दूरदर्शी। 

“दूसरे दर्शनों से मार्क्सवाद का अंतर यह है कि उन्हें आप समझ सकते हैं, मार्क्सवाद को काम करते देख सकते हैं। कार्ययोजना के कारण ही यह दर्शन नहीं रह जाता, मज़हब बन जाता है। दर्शन आपकी अन्तश्चेतना में बदलाव लाते हैं और यह बड़े नामालूम ढंग से हमारे आचरण को बदलता है और इस तरह बिना हमारे लक्ष्य किए उनकी पहुँच की सीमा में बदलाव आते हैं। मज़हब सीधे हस्तक्षेप करता है और बदलाव के लिए बाध्य करता है। बाध्य करने के लिए जब हिंसा का सहारा नहीं ले पता तो छल और फरेब का सहारा लेता है।“ 

“उसने सिर पकड़ लिया। यार तुम जा किधर रहे हो? तुमने मार्क्स को किनारे लगा दिया और फिर भी अपने को मार्क्सवादी कहते हो। इससे बड़ा ढोंग क्या हो सकता है. “

“मेरी बात को समझने की कोशिश करो। राइट ब्रदर्स ने एक जोगाड़ किया। वह उड़ चला। वे असाधारण मेधा के व्यक्ति थे  परन्तु उसी आधार पर उनको वैज्ञानिक नहीं मान लोगे। वे थे तो सायकिल ठीक करने वाले ही। उनके पास एक विजन था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उड़ने का यन्त्र मात्र स्वप्न नहीं है. यह संभव है. यह छोटी बात नहीं है और यह बड़े से बड़े इंजीनियर के वश का नहीं था. आगे चल कर उससे दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई । उनके उडनयंत्र की कमियों को दूर करते हुए विमान अंतरिक्ष यान तक पहुँच गया, लगातार कमियों को लक्ष्य करता और उन्हें दूर करता. जो इतिहास और समाजशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में लेन को लालायित रहे हैं उन्हें विज्ञान से कुछ सीखना था पर उन्होंने तो इतिहास को भी धर्मशास्त्र बना दिया. 

“ हम मार्क्स से दृष्टि ले सकते हैं और उन भूलों से बच सकते हैं जो मार्क्स से हुईं। मैं मार्क्सवादी इसी अर्थ में हूँ। उन भूलों के कारण मार्क्सवाद का भट्टा बैठ गया। उनसे बच कर देखो तो उसकी अपार संभावनाएँ हैं क्योंकि पूँजीवादी विनाश  से बचाने की ताकत केवल मार्क्सवाद में ही है। यहाँ मैं केवल उन गलतियों को समझना ओर समझाना चाहता हूँ जिनसे उबरने का प्रयत्न जरूरी है।

“देखो सभी धर्म मानवकल्याण केा ही लक्ष्य बना कर चले हैं। ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी या आत्मवादी और भौतिकवादी होने से उनका मूल चरि त्र नहीं बदल जाता, ध्येय अवश्य बदल जाता है। स्वर्ग जाने के स्थान पर धरती पर ही स्वर्ग उतारने की लालसा प्रेरक हो जाती है, परंतु जो उतरे उससे ही पता चलेगा कि यह स्वर्ग है या नरक। कम्युनिज्म पर अपनी टिप्पणी का अंत करते हुए हाब्सबाम लिखते हैं, ‘‘मैं इस सर्वे पर दो बातें कह कर इसे समाप्त करूँगा। पहला कि इस्लाम ने अपने पहले सौ साल में जितने बड़े भूभाग पर विजय पाई थी उससे भी तेजी से, इसने उससे भी बड़े भूभाग पर विजय पाई, फिर भी इस विशाल क्षेत्र पर इसका कितना सतही असर पड़ा।... कम्युनिज्म अवाम के धर्मान्तरण पर आधारित नहीं था अपितु लेनिन के शब्दों में हरावल दस्ते या अपने काडर पर आधारित धर्म था।... सभी शासक कम्युनिस्ट दल अपने चुनाव और परिभाषा से अभिजन अल्पमत थे।... फिर कम्युनिज्म सारतः एक विश्वास की चीज था जिसमें वर्तमान का मूल्य एक अपरिभाषित भविष्य का साधन बनने में था।...”

“तो तुम मुझे हाब्सबाम पिला रहे थे।“

“मैं हाब्सबाम से केवल इस सीमा तक सहमत हू कि मार्क्सवाद दर्शन से धर्म में परिवर्तित हो गया और उसमें धर्म की अनेक खामियाँ आ गईं, पर हाब्सबाम मार्क्सवादी नहीं हैं। मैं हूँ। हॉब्सबॉम की टिप्पणी में मार्क्सवाद के धर्म में बदल जाने की पहचान तो है पर यह समझने की कोशिश नही है कि यह दर्शन से धर्म बना कैसे. हॉब्सबॉम साम्यवाद क़े पतन को रेखांकित करते हैं पर पतन क़े सबसे प्रधान कारण को लक्ष्य नही कर पाते न ही अपने ऐतहासिक चरण पर इसकी अनिवार्यता का पूर्वाभास पाते है. इतिहास क़े अंत की बात करने वाले इतिहास की गतिकी को नहीं समझ पाते क्योंकि उनके पास इतिहास दृष्टि है ही नही. जो इतिहास में जितनी ही गहराई में जाएगा वह इतिहास की गतिकी को उतने ही कुहामुक्त रूप में समझ पायेगा. मुझे यह भ्रम है कि मैंने वेदों से भी आठ दस हज़ार साल पहले क़े अतीत को समझा है."

"तुम्हारे अलावा दूसरा कोई."

"दिखाई नही देता. हो सकता है कल पैदा हो."

वह ठठाकर हँसा.

10/25/2015 11:58:20 AM

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