जानकारों के बीच

जानकारों के बीच मूढ़ सा खड़ा सोचता हूँ जानकार लोग मुझे मूढ़ क्यों लगते हैं। 85 वें साल में पता चला। वे सामने की चीज़ को भी ज्ञान चक्षु से देखते हैं और किसी दूसरे युग और काल की इससे मिलती जुलती चीज़ को देखते हैं और ज्ञान धन से वंचित मैं उसे अपने चर्मचक्षु से देखता हूँ।  वे ज्ञाता हैं मैं द्रष्टा।. उन्हें ज्ञान के साथ भाषा भी मिल जाती है और वाग्मिता भी। मुझे देखे को व्यक्त  करने के लिए सही भाषा का आविष्कार करना होता है और इस बीच मैं मूढ़वत सिर धुनता रहता हूँ।
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