इतिहास के दावेदार

"तुम जानते हो, कुछ लोग तुम्हे मोदी का भक्त समझते हैं."

"आगे ऐसा कोई आदमी टकर जाय तो उसे मेरा नाम बता देना. हो सकता है वह पहले से मेरा भक्त हो, न हुआ तो आगे हो जाएगा."

"बुरा मत मानना. तुम मोदी की वकालत तो करते हो.” 

"जो न्याय का साथ देगा वह अन्याय का विरोध करेगा. लेखक की पक्षधरता का यही अर्थ है. दुखी, उत्पीड़ित, अपमानित के प्रति सहानुभूति ही उसे उत्पीड़ित करने वाले का विरोध और सताए हुए का साथ देने को प्रेरित करती है. सत्य के प्रति निष्ठा उसे असत्य का विरोध करने को बाध्य करती है."

"तुम, तुम..." वह गुस्से से हकलाने लगा.

मैंने कहा, “इस समय तुम मेरी बात समझ न पाओगे, इसलिए मैं तुम्हे एक दूसरे सताए हुए आदमी की पीड़ा सुनाता हूँ. उसका नाम था फ्रेडरिक नीत्शे. नाम सुना है उसका?"

"वही न जिसके दर्शन का नतीजा नाज़ीवाद था?"

"नाज़ीवाद उसके दर्शन पर प्रहार था. जीवित मिलता तो हिटलर सबसे पहले उसे गैस चैम्बर में भेजता, पर देखो उसका दुर्भाग्य कि तुम भी उसे नाज़ीवाद का जनक मानते हो. अफवाह में कितनी ताक़त होती है, इसका यह नमूना है."

“क्या यह अफवाह है की उसने ही सुपरमैन याने अतिमानव की अवधारणा दी थी और उसके कारण हिटलर ने जितने यहूदियों को मौत के घाट उतारा उनसे अधिक जर्मन मूल के बीमार, अपंग, असहाय, कमज़ोर जनों को मौत के घाट उतारा था. 

“सुपरमैन की अवधारणा एक अफवाह का विकृत रूप थी, लेकिन नाज़ियों ने जिस क्रूर, अनैतिक, जघन्य अतिमानव को अपना स्वप्न बनाया उसमे तो मानवता का ही सर्वनाश हो जाता. सामने आता एक शक्तिशाली नरपशु, जिसका कुछ सम्बन्ध विकासवाद की मूर्खतापूर्ण समझ से जोड़ा जा सकता है, पर सीधा जैव विकास से भी नही.

“विकासवाद से तो सम्बन्ध है ही. उसमें तो माइट इस राइट और सर्वाइवल  ऑफ द फिटेस्ट का सिद्धांत चलता ही है. कम से कम इसकी तो पूरी समझ थी नाज़ियों को.”

नही थी, भाई. फिटेस्ट का अर्थ आकार, शक्ति या बुद्धिबल में सबसे बड़ा नही है. समायोजन क्षमता में दूसरों से आगे है. इसका अर्थ है नई परिस्थियों के अनुसार अपने को ढालना. ऐसे गुणों का विकास जो हमें बचे रख सकें. इसमें अकड़ और अहंकार की तुलना में लोच और नम्रता अधिक समझदारी सिद्ध होती है. ऐसे ही प्राणियों को प्रकृति बचे रहने का अवसर देती है. डायनोसर ख़त्म हो जाते है तिलचट्टे बचे रह जाते हैं. इसे ही कविता की भाषा में नेचुरल सिलेक्शन या प्राकृतिक वरण कहा दार्शनिको ने. नाज़ियों में अहंकार था, अकड़ थी, इसलिए उन्हें तो प्रकृति के नियम से ही नष्ट होना था इससे पहले वे कितना विनाश कर गए या कर सकते थे यह दूसरी बात है. 

खैर, नीत्शे तो बहुत सात्विक और साधक स्वभाव का था. उसके आदर्श बहुत ऊँच थे लेकिन एक बार सुपरमैन की अफवाह से उसका नाम जुड़ जाने के बाद यह इस तरह प्रचारित हुआ कि टॉलस्टॉय ने भी उसे रुग्ण मानसिकता का मान लिया. जानते हो न नीत्शे के विषय में उनका कथन:

Nietzsche was stupid and abnormal.

“एब्नार्मल तो कह सकते हो उसे. पर उसकी सनक एक निर्भीक, आत्मविश्वासी साधक की थी और एक अफवाह ने उसको कहा से कहाँ पहुंचा दिया. इतिहास के पादलखाने में.” 

“तुम बार बार किस अफवाह की बात कर रहे हो? साफ़ क्यों नहीं बताते?” 

देखो, नीत्शे ने महामानव की कल्पना की थी जो उच्च मानवीय गुणों से लैस हो. उसका मानना था की कोई भी व्यक्ति श्रम, अध्यवसाय, सुनियोजित और अडिग कर्मठता के बल पर असाधारण ऊंचाई तक पहुँच सकता है. इसे तुम उसकी संभावनाओं का शिखर कह सकते हो. वह स्वयं अपने विषय में ऐसा ही ख्याल रखता था. याद करो चोटियों से चोटियों पर पाँव रखते हुए चलने का मुहावरा. और जानते हो अपने बारे में इस नाचीज़ का भी ख़याल कुछ ऐसा ही है. एक शेर अर्ज़ करूँ.”

"फँस गए हैं तो सुनना ही पडेगा."

‘आसमानों पर कदम रखता हुआ चलता है.

तुमने भगवान को देखा कभी आते जाते.’     

शेर तो सचमुच किसी सिरफिरे का ही लगता है पर खुद अपने ही मुंह मियां मिट्ठू बनना. 

दर्पोक्तियाँ एक चीत्कार होती है, अपने न समझे जाने की अकुलाहट की अभिव्यक्ति जो अकेले पड़ जाने के बाद भी आत्मबल को ज़िंदा रखती है. यही अकुलाहट नीत्शे में भी थी. जानते हो वह कहता था मुझे समझने वाले तीसरी सहस्राब्दी में पैदा होंगे. अपनी बराबरी का किसी को गिनता ही न था.  उसकी कुछ दर्पोक्तियां सुनाऊँ. अंग्रज़ी में ही सुनाऊंगा :

It seems to me that to take a book of mine into his hands is one of the rarest distinctions that anyone can confer upon himself.

“रहने दो यार तुम उसकी बात नहीं कर रहे, उसके बहाने अपनी बात कर रहे हो.”

ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया. 

“तो नीत्शे जिनको महामानव मानता था वह उन जैसे लोग थे जिनके प्रति उसके मन में अपार श्रद्धा थी. ये थे गैलिआनी, गेटे, मोंटेन, हेनरी बेली. पहले पहल तो वह शोपेन्हावर का अँधा भक्त था. उसी में माधयम से भारतीय दर्शन से भी प्रेरित. दस स्पेक जरथुस्त्र उसी प्रभाव की रचना है.”

“क्या उसका परिवार नाज़ी विचारों का नही था?”.

तुम शायद उसकी बहन एलिज़ाबेथ नीत्शे की बात कर रहे हो जिससे वह नफरत करता था क्योंकि वह यहूदियों से घृणा कराती थी, नाज़ी संगठन से जुडी थी और हिटलर का हाथ पकड़ा था. नीत्शे उसे "vengeful anti-semitic goose” कहता था.

“फिर वह अतिमानव वाली अवधारणा उसके नाम से कैसे जुडी? तुम बार बार जिस अफवाह की बात कर रहे थे वह क्या है?”

"बात दर असल ये है की एक पत्रिका के कार्टून में उसकी पुस्तक Ubermenschen  अर्थात अद्वितीय के अंग्रेजी अनुवादकों ने Ubermensch शीर्षक दे दिया और आज की भाषा में कहें तो यह वायरल हो गया.

“एक बात और, एलिज़ाबेथ भी नाज़ी दल में उसके मरने के बहुत बाद में पहुंची  थी. अपने अंतिम दिनों में नीत्शे ने अपनी माँ से भी मिलने से इंकार कर दिया था. पर अफवाहों की ताक़त तर्क और प्रमाणों पर भारी पड़ती है. लोगों को इनमे रस आने लगता है. ये रुकने का नाम नहीं लेतीं.

नीत्शे नस्लवाद का कटु आलोचक था. उसकी मान्यता थी की व्यक्ति की उच्चतम संभावनाएं उसी में छिपी हैं - थिंग-इन-इटसेल्फ - उसका प्रिय मुहावरा था. उसका मानना था कि महत्वकांक्षी व्यक्ति को अथक भाव से छोटी छोटी चीज़ों पर काम करते हुए उनमे पूर्ण सिद्धि प्राप्त करनी चाहिए और फिर उन अनुभवों को संयोजित करते हुए महान कृति प्रस्तुत करनी चाहिए.” 

“तुमने तो पूरी तस्वीर ही उलट दी.”

“ऐसा कोई इरादा नहीं था पर एक बात जानते हो उसकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा माली बनने की थी. ऐसे आदमी को निराधार दुष्प्रचार के कारण कैसी अपकीर्ति से गुज़रना पड़ा.

“एक दूसरी कहानी इसमें जोड़ें: वाल्तेयर को तो जानते ही हो.

“वाल्तेयर कहाँ से आ घुसा नीत्शे में.” 

“सुनो तो सही. एक आदमी के ऊपर गंभीर आरोप लगा. उसको फांसी दे दी गई. बाद में वाल्तेयर को अपनी खोज से पता चला की वह निरपराध था. वाल्तेयर ने अपने प्रमाणों के साथ मुक़दमे की फिर से सुनवाई करवाई. लोगो को अजीब लग रहा था. उसे फांसी तो बहुत पहले दी जा चुकी थी. अब मुक़दमे से कोई फायदा? वाल्तेयर ने कहाँ मैं उसके प्राण तो नहीं बचा सकता पर उसके नाम को उस अपयश से तो बचा सकता हूँ. मुक़दमा तो जीतना ही था.” 

“तो यह होती है एक बौद्धिक की भूमिका. जिन पर अफवाहों और दुष्प्रचारों से प्रहार किया जा रहा हो उसके साथ खड़ा होना भी अन्याय के खिलाफ लड़ना ही है.”

“क्या इतने थोड़े से लोगों की नज़र से गुज़रने वाला यह लेख नीत्शे को उस कलंक से बचा पायेगा?” “भरोसा तो नही है पर हम अफवाहों के दबाव में न आकर प्रत्येक अभियोग और आरोप के प्रमाणों की मांग और जांच तो कर ही सकते है.  नीत्शे की भविष्यवाणी ग़लत तो नहीं लगती.  आखिर ये इबारतें  हम तीसरी सहस्राब्दी में ही तो लिख और पढ़ रहे हैं.  (THE CONSOLATIONS OF PHILOSOPHY by Alain de Botton)

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