अस्पृश्यता– 18

‘’तुम इत्ती सी बात पर इतना घबरा गए कि हिन्दुित्व खतरे में है का नारा लगाने लगे। जानते हो जब खतरे की बात की जाती है तो हिंसा का पर्यावरण तैयार किया जाता है। उसके बाद जीने मरने के बीच चुनाव करते हुए डरे लोग हिंसा पर उतारू हो जाते हैं और मारे वे जाते हैं जिनसे वे डरे हुए थे। उन्हें समझ में नहीं आता कि यह सब हो क्यों रहा है। जब तक समझने का प्रयत्न और अपने बचाव का उपाय करते हैं तब तक काफी संख्या में मारे जा चुके होते हैं। गरज कि जिन्हें खतरनाक बताया गया था, उनकी समझ में नहीं आता कि हमसे उसे क्या खतरा था। तुम कर क्यां रहे हो यह सोचा भी है?’’

‘’सोचने का काम जब से तुमने सँभाल लिया तब से सोचने की अनुमति तुमसे ले कर सोचना पड़ता है। तुम बताओ कि यह आरोप गढ़ने से पहले तुमने जो कहा उस पर सोचा था या नहीं?’’

‘’इसमें सोचने की क्या बात है? तुम हिन्दुओं को मरने मारने के लिए भड़का रहे हो और इसके नतीजे हम भुगत चुके हैं?’’

‘’और फिर भी अक्ल नहीं आई। जानते हो क्यों । क्योंंकि भारतीय वामपन्थ़ भावाकुल आन्दोलन रहा है, जिसमें विवेक से अधिक भावुकता से काम लिया गया और इसके कारण इसे बार बार धोखा खाना पड़ा और फिर भी सुधरने के लक्षण दिखाई नहीं देते। इस रूमानियत से बाहर आओ तब समझ में आएगा कि जब बिना किसी आधार के या क्षीण आधार के असुरक्षा की भावना भड़काई जाती है तब उसके परिणाम वह होते हैं जिससे तुम हमें आगाह कर रहे हो। यह काम तुम लोग कर रहे हो जो गालियॉं देने की स्वंतन्त्रंता पाने के बाद भी, आए दिन, कराहते हो कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता खतरे में है। सभी तरह की सुरक्षाओं से लैस होने के बाद भी कहते हो, असुरक्षा बढ़ गर्इ है। इसी से उस तरह प्रतिक्रिया पैदा होती है और होती थी, जिसकी तुमने याद ताजा कर दी। ’’जहॉं आधारहीन या क्षीणाधार अफवाहों से लोगों के मन में दहशत उतार कर वह उग्र और विवेकशून्य अन्धाप्रतिक्रिया उभारी जाती है वहीं यह आरोप लग सकता है। यह मत भूलो कि इसमें करता कोई और है, भरता कोई और। इसके पीछे कुछ शक्तियॉं होती हैं जो अपने जघन्य इरादों के कारण सामने नहीं आना चाहती, जो चेहरे सामने आते हैं वे अपने दिमाग से काम नहीं लेते और जब तब कुछ आतुर लोग अपने हितों को ले कर उनके साथ हो लेते हैं।

‘’इससे ठीक विपरीत है वह विश्ले षण, जिसमें कार्यों, प्रवृत्तियों और उनके संभावित इरादों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अपनी सीमाओं को समझने और उन परिणतियों से बचने के उपाय सोचने का आग्रह किया जाता है। तुम इन दोनों में फर्क तक नहीं कर पाते, समाधान क्या निकालोगे।

’’तुम्हें जो इत्ती सी बात लगती है उसके पीछे मुझे वे महाशक्तियाँ दिखाई देती हैं जिनकी योजनाऍं लगातार कारगर हुई हैं और जिनके कारण विश्व मानवता को खतरा है। इस नीति की सबसे बड़ी सफलता यह रही है कि इसने यहॉं के दो प्रधान समुदायों को बहुत चतुराई से एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया और द्वेष को इस तरह सामूहिक चेतना में उतार दिया कि वे न रहें तो भी वह जहर काम करता रहे। ये दोनों इस बात पर सहमत नहीं हो सके कि दोनों का दुश्मन वह है जो छिप कर, बचाव करने के जाल में फँसा कर, दोनो की एकता को असंभव बना रहा है, जिससे वे उसके विरुद्ध खड़े होने की जगह आपस में लड़ते रहें। इसे सैयद अहमद जैसा विवेकशील व्य क्ति भी न समझ सका। जो काम पहले अंग्रेज करते रहे वही, उनके चले जाने के बाद तुम करते रहे, और बदली परिस्थितियों में उसका सबसे प्रभावशाली उपयोग अमेरिकी पूँजीवाद कर रहा है जिसका पंजा ईसाइयत बनी हुई है। उससे तुम्हारी साँठ गॉंठ है, वहॉं तुमको पाला पोसा जा रहा है, इसलिए तुम उस जाल को देख ही नहीं पाते और छोटे से छोटा बहाना तलाश कर मुस्लिम असुरक्षा को उभारने का प्रयत्न करते हो, जब कि हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों को सबसे अधिक खतरा उस पूँजीवादी हथकंडे से है जिसके सबसे बड़े भुक्तिभोगी, आज की तिथि में मुसलमान हैं, हम नहीं। उन्हें अन्तारार्ष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करके उनके प्रति निर्वेदता पैदा की जा रही है, जिसमें उनके विरुद्ध किसी समय किये जाने वाले जघन्यतम अपराध को इस रूप में प्रचारित किया जा सके कि इसके अतिरिक्त कोई चारा नहीं था। जरा इसके इतिहास पर तो ध्यान दो।‘’ 

’’तुमने हंटिग्टन की वह किताब कानफ्लिक्ट आफ सिविलाइजेशन्स पढ़ी है।''

''कानफ्लिक्ट नहीं क्लैश आफ सिविलाइजेशन्स! जानते हो यह कब आई थी, 1996 में! इससे पहले यह अमेरिकी विदेशनीति के किसी जर्नल में निबन्ध के रूप में प्रकाशित था। इतिहास पर गौर करो, 80 के दशक में अफगानिस्तान सोवियत प्रभाव में आता है और उसे हटाने के लिए अमेरिका दक्षिण अफ्रीका के एक कट्टरतावादी संगठन का इस्तेमाल करता है और उसे नशीले पदार्थो की तस्करी का बाजार सौंप देता है और उसे इतना उग्र बना देता है कि वह शा‍न्ति के लिए खतरा बन जाता है। 1988-89 के बीच उसी से अलकायदा का जन्म और उसके नेता के रूप में ओसामा बिन लादेन का उदय होता है जो अमेरिका विरोधी हो जाता है और कई देशों में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाने के बाद 1993 में वर्ल्डं ट्रेड सेंटर पर हमला कर देता है। कुछ लोगों का शक है कि अमेरिका को इसकी पूर्वसूचना थी और उसने जानबूझ कर इसे हो जाने दिया, जिससे अरब देशों को रौंदने का बहाना मिल सके। असंभव नहीं है, हथियारों के कारोबार पर पलने वाला अमेरिकी पूँजीवाद अपने ही नागरिकों को नशे और मनचलेपन का शिकार बना कर अपना काम निकाल सकता है तो अपने कुछ सौ नागरिकों और कुछ अरब की संपदा की बलि देना उसके लिए अकल्‍पनीय नहीं। 1996 में यह पुस्तक आई और इसमें केवल अलकायदा ही नहीं मुस्लिम समुदाय का ही ऐसा चित्रण किया गया कि लगे जहॉं भी मुसलमान है, शान्ति के लिए खतरा हैं और दुर्भाग्य की बात, इस चाल को मुस्लिम समुदाय ने समझा नहीं और इस झॉंसे में पड़ गए कि पश्चिमी दुनिया उनसे डर गई है और ऐसी बहकी बहकी बातें करने लगे और उन्हीं संकेतों पर बढ़ते चले गए जिन्हें अपने भय के रूप में अमेरिका ने प्रसारित किया था। पहले हंटिंगटन की पुस्ततक की इन पंक्तियों को देखो:

Islam's Bloody borders 

... Muslims from non-Muslims. While at the macro or global level of world politics the primary clash of civilizations is between the West and the rest, at the micro or local level it is between Islam and the rest.

Intense antagonisms and violent clashed are pervasive between local Muslims and non-Mulim peoples. In Bosnia, Muslims have fought a bloody and disastrous war with Orthodox Serbs and have engaged in other violence with Catholic Croatians. In Kosovo, Albanian Muslims unhappily suffer Serbian rule and maintain their own parallel underground government, with high expectations of probability of violence between the two groups. The Albanian and Greek governments are at loggerheads over the rights of their minorities in each other's countries. Turks and Greeks are historically at each others throats. On Cyprus, Muslim Turks and Orthodox Greeks maintain hostile adjoining states. In the Caucasus, Turkey and Armenia are historic enemies, and Azeris and Armenians have been at war over control of Nagorno-Karabakh. In the north Caucasus, for two hundred years Chechens, Ingush, and other Muslim peoples have fought off and on for their independence from Russia, a struggle bloodily resumed between Russia and Chechenya in 1994. Fighting also has occurred between the Ingush and the Orthodox Ossetians. In the Volga basin, the Muslim Tatars have fought the Russians in the past and in the early 1990' reached an uneasy compromise with Russia for limited sovereignty. 255 

इस्लाम और बाकी सभी के बीच टकराव को वास्तविकता में बदलने के लिए अमेरिका अपने इशारों पर चलने वाले दक्षिण अरब का ही इस्ते माल करता रहा। भारत में इस्लामी कटटरता को बढ़ावा देने के लिए सऊदी अरब की ओर से जो प्रयत्न किए जाते रहे उनके पीछे अमेरिका का हाथ था । गुजरात में सांप्रदायिक दंगो के बाद अमरीकी दूतावास के कुछ अधिकारी पश्चिम बंगाल के मदरसों से संपर्क करने पहुंचे थे। आज की स्थिति में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों यह पता होना चाहिए कि दोनों ब्रिटेन के उस जाल को नहीं समझ सके जिसमें वह उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करके, हिंदुओं को मुसलमानों से अलग करके, ऊंची जातियों को पिछली जातियों से अलग करके, एक ही जाति की उपजातियॉं तैयार करके, आटविक जनों को आधुनिक जनों से अलग करके, जितनी भी कल्पनीय दरारें संभव थी,पैदा करके उनमें टकराव की नीति अपनाई । उनको अलग करके उनमें जहर बो कर झगड़े पैदा करते रहे कि चैन से हमारे ऊपर शासन करते रहें और सांप्रदायिक भावनाओं को उस सीमा पर पहुंचाने में सफल हुए कि उनके जाने के साथ देश के टुकड़े हो जाएँ। यदि इतनी बड़ी कीमत चुका कर भी हमारा दिमाग ठिकाने नहीं आया तो मानना होगा, हमने भारी मोल चुकाया है पर मोल के बदले कुछ पाया नहीं। हमने इतिहास से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की। समाज को होश में आने के लिए कितनी ठोकरें खानी पड़ेगी यह हमें ही सोचना होगा। यदि जैसा कि हंटिंगटन ने कहा, व्यापक स्तर पर यह टकराव पश्चिम और शेष दुनिया का, वेस्ट और रेस्ट का है तो शेष दुनिया को अपने बचाव के लिए एक जुटता कायम करनी होगी। समस्याओं को सुलझाना होगा अन्यथा हमारी बर्बादी तक अमेरिका का खेल चलता रहेगा।

''हम एक बहुत बड़ी ताकत के सामने हैं, जिसके पास दुनिया के सबसे संहारकारी हथियार हैं, दुनिया भर का भाड़े पर जुटाया हुआ आला दिमाग है, जिसकी प्रचार की शक्ति का कोई जवाब नहीं, जिसके सूचना संग्रह के औजार और कारोबार इतने पैने हैं कि दुनिया के एक एक व्यतक्ति के दिल, दिमाग और इरादे को भॉंप सके और जरूरत पड़ने पर किसी का कच्चा चिट्ठा सामने रख सके, जिसमें हद दरजे की मक्कारी है और जो किसी से केवल कार्यसाधक रिश्ते ही रख्ता है, जिसके संजाल मानवाधिकार और गैर सरकारी संगठनों के रूप में पूरे संसार में फैले हैं, जो अकेला देश है जो राष्ट्र मंडल को अपनी जूती समझता है और उसकी परवाह किए बिना किसी सीमा तक जा कर कुछ भी कर सकता है, उससे टकराने के लिए नहीं, उसके चंगुल से अपने बचाव के लिए शेष विश्वव को अपनी एकता कायम करनी होगी और अपने भीतर बैठे, विदेशी पैसे पर पलने वाले संगठनों पश्चिम की ओर दौड़ लगाने वाले समाजवादियों से भी सावधान रहना होगा। ईसाइयत एक मत के रूप में हमारे देश के लिए, जहॉं मतों और संप्रदायों की संख्या गिनने चलें तो आधे छूट जाँय, खतरे की चीज नहीं हैं, परन्तु उसके पीछे काम करने वाला पंजा, उसकी योजनाऍं केवल भारतीयों के लिए ही नहीं, शेष विश्व के लिए चिन्ता का विषय हैं और इनको नियन्त्रित किया जाना और इसके लिए आपसी दूरियॉं कम करना जरूरी है।

१७ जनवरी २०१६

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