बात ही काम है यह क्यों न समझते हैं जनाब!

‘‘तुम कहते हो हमारे पास कोई जन्मसिद्ध अधिकार न तो होता है, न ही है। संविधान में इन्हें गलती से डाल दिया गया है। संविधान निर्माताओं में भारतीय समाज की समझ नहीं थी।‘’

‘‘जो जन्मसिद्ध है उसे संविधान दुबारा कैसे देगा? जन्मसिद्ध अधिकार केवल भारत के लोगों को ही क्यों मिलेगा? तो पहले तो यह सोचो कि संविधान न तो जन्मसिद्ध अधिकार दे सकता था, न जन्मसिद्ध अधिकार होते हैं, सिवाय एक के।’’

‘‘सुनूँ तो!’’

‘‘रोने का अधिकार। और वह अधिकार नवजात को इसलिए नहीं मिलता है कि उसे पता होता है कि उसे रोने का अधिकार प्राप्त है और वह इसका इस्तेमाल कर रहा है। वह जन्म की पीड़ा और माँ के गर्भ में जो सुकून भरा तापमान होता है उससे बाहर आते ही तापमान की भिन्नता से पैदा बेचैनी से पैदा होने वाली चीत्कार है जिसके बारे में बच्चे को भी पता नहीं होता कि वह कर क्या रहा है और उसे सुन कौन रहा है। देखो, परिभाषा पर तौलो तो आत्माभिव्यक्ति और स्वान्तःसुखाय अभिव्यक्ति का अवसर जीवन में एक ही बार आदमी को मिलता है: जन्म के बाद, बिना यह जाने कि इसे कोई सुनने जानने वाला है या नहीं। अभिव्यक्ति से उसे जरूर सुकून मिलता है। 

“अच्छा, आदमी और जानवर में सबसे बड़ा अन्तर क्या होता है, यह बता सकते हो?’’

‘‘मेरी परीक्षा ले रहे हो?’’

‘‘नहीं, बस पूछ लिया यह जानने के लिए कि मैं जो सोचता हूँ क्या वही तुम भी सोचते हो।’’

‘‘जानवर के पास आवेग होते हैं, बुद्धि नहीं होती।’’

‘‘तुमसे यही उम्मीद थी। तुम्हें यह बताऊँ  कि आदमी जानवरों से अधिक मूर्ख पैदा होता है और अधिक मूर्ख रहता है तो और पूरी समझदारी से, पूरी जिन्दगी जीने के बाद उस सच को समझ पाता है जिसे मीर ने मुखर किया था: ‘यही जाना कि कुछ न जाना हाय! सो भी इक उम्र में हुआ मालूम।‘ अर्थात् वह मूर्ख पैदा होता है, दूसरे जानवर, खैर सभी जानवर नहीं परन्तु अधिकांश जानवर, पैदा होते ही अपने पाँवों पर खड़े हो जाते है, पर आदमी के बच्चे को पाँवों पर खड़ा होने का शउूर भी एक लम्बे संघर्ष के बाद मिलता है। जानवर मनुष्य से अधिक व्यावहारिक होते हैं, और इसलिए वे उन तमाम मूर्खताओं से बच जाते हैं जिनके कारण मनुष्य एक दूसरे का सिर काटते हैं। यदि आदमी का विकास न होता तो यह धरती अयुत कोटि वर्ष तक बची रहती, अपनी अधिकतम विविधताओं के साथ। आदमी पैदा हो गया तो जब तक प्रकृति के नियम के अनुसार रहा सब कुछ सन्तुलित था। जनसंख्या तक। जब उसने प्रगति के नाम पर प्रकृति पर विजय पाने का अभियान छेड़ा, वहीं से उसने अपने ही नहीं, धरती के विनाश की भी नींव रख दी।’’

‘‘तुम मुझे गलत सिद्ध करके किसी सच पर प्रकाश डालने वाले थे।’’

मैने उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया, ‘‘आदमी और दूसरे जानवरों में फर्क सिर्फ यह है कि दूसरा कोई जानवर जन्म लेते ही रोना नहीं शुरू करता। अपने पाँव पर खड़ा हो जाता है। आदमी अकेला है जो जन्म लेते ही रोने लगता है, रोते हुए जीता है और दूसरों को रुलाता हुआ, रोते रोते मर जाता है । दूसरे जीवों का जन्म जीने के लिए हुआ था उन्हें जीने नहीं देता आदमी। खुद जीने का शऊर न पैदा कर पाया आदमी और मरने का शऊर उसमें है ही नहीं, वर्ना खुद अपने पर्यावरण को गैस चैंबर बना कर घुट-घुट कर न मरता।“

“लेकिन हमने जन्मसिद्ध अधिकारों पर बात करना चाहा था।“ 

“मैं भी उन्हीं पर बात कर रहा था। कहा, जन्मसिद्ध अधिकार न होते हैं, न हैं। और जहाँ तक आधारभूत स्वतन्त्रताओं की बात है। वे किताब में होती हैं, पर किताब से बाहर होती ही नहीं। और जानते हो क्यों नहीं होती हैं?

‘‘जो तुम जानते हो उसे मैं कैसे जान सकता हूँ? बूझो तो बताउूँ की तर्ज पर, बताओ तो बूझूँ।’’

‘‘सच यह है दोस्त कि हमारे पास संविधान ही अशुद्ध मिला, उसे एक शूद्र ने बनाया, हमारा समाज इतना उदार है कि उसने एक ऐसे शूद्र को जो अंग्रेज़ों से कहता था, हमें स्वतन्त्र भारत में न्याय नहीं मिलेगा, इसलिए हमारी सुरक्षा का प्रबन्ध जब तक न हो जाय, देश को आजाद न करना, उसे समझा बुझा कर अपनी उदारता का परिचय देते हुए यह भी कह दिया, भाई तू ही बना दे ऐसा संविधान जिससे यह देश चले। और उसने बनाया भी एक मानवतावादी संविधान। हमारी सामन्ती सोच अपनी उदारता तो दिखा सकती थी, शूद्र के बनाए विधान को तो नहीं मान सकती थी। वैसे भी हम जिसे पवित्र मानते हैं उसकी पूजा करने लगते हैं, पर न उसे जानते हैं, न उसकी मर्ज़ी मानते हैं’’

‘‘क्या बकवास करते हो यार! कभी किसी ने संविधान की आलोचना की है?’’

‘‘मैं भी मानता हूँ कि संविधान की आलोचना न होनी चाहिए। परन्तु तुम बताओ क्या संविधान की स्वीकार्यता के बाद संविधान की अवहेलना होनी चाहिए थी। ऐसा क्यों हुआ? मैंने एक चूक की कि इसे वर्णवाद के खाते में डाल कर समझने का प्रयत्न किया। वह गलत है। खासकर तब जब एक नया वर्णवाद अंग्रेजी शिक्षा से पैदा हो चुका है जो दोनों जहाँ की नेमतें एक साथ भोगना चाहता है, परन्तु क्या हमने अपने संविधान का आदर किया? वाद स्वतन्त्रता से आरंभ हुआ था इसलिए स्वतंत्रता की ही बात करें।  संविधान का मसौदा अंग्रेजी में बना था इसलिए उसे अंग्रेजी में ही रख कर समझें तो अच्छाः

Seven fundamental rights were originally provided by the Constitution – right to equality, right to freedom, right against exploitation, right to freedom of religion, cultural and educational rights, right to property and right to constitutional remedies.

“इनमें  कोई ऐसा विधान नहीं है जिसका पालन हुआ हो। कोई ऐसी प्रतिज्ञा नहीं है जो परस्पर असाध्य न हो, कोई ऐसी योजना नहीं है जिसमें इनको हासिल किया जा सके। 

“हमें यह अधिकार है कि हम अपने संविधान की महिमा गा सकते हैं परन्तु न तो उसके अन्तर्विरोधों को दूर कर सकते हैं, न ही उन विरोधों की प्रकृति को समझ सकते हैं। पूजना है तो समझना क्या!’’

‘‘तुम कहते हो हमारा संविधान और विधान जनता के हित में नहीं वकीलों के हित में बनाए गए हैं और इनके प्रचलन-काल में पूरे देश पर जो भी बीते, खुश केवल वे ही रह सकते हैं, इसलिए हमें संविधान पोषित अधिकारों की जगह अपने कर्तव्यों की बात करनी चाहिए जिनसे कतिपय अधिकार बिना माँगे मिल जाते हैं।“

“कमाल कर दिया तुमने तो। मेरे मुँह की बात छीन ली। हमारा संविधान नये उपनिवेशवाद का संविधान है और हम उसके ही परिणाम अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं। जो कह दिया वह करेंगे नहीं। बात भी काम है यह क्यों न समझते हैं जनाब।

12/12/2015 10:14:42 PM

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