भुलक्कड़पन

“यार, मुझे गलत मत समझो. तुम से बात करता हूँ तो सचमुच क़ायल हो जाता हूँ. पर जब रोज़ ब रोज़ विभिन्न क्षेत्रो के लोगों को एक स्वर में एक ही बात दुहराते देखता हूँ तो तुम्हारे ऊपर ही संदेह होने लगता है."

“यह तो मनोचिकित्सा से जुड़ी समस्या है. इसका इलाज मेरे पास नहीं है. इसके लिए तुम चाहो तो किसी साईकेट्रिस्ट से सलाह ले सकते हो. लेकिन वह बेचारा भी भुलक्कड़पन, मिर्गी और अल्ज़ीमर के बीच अंतर तो बता सकता है, भुलक्कड़पन के भेद, प्रभेद और लक्षण तो बता सकता है, पर वह भी तुम्हारा इलाज़ नहीं कर सकता. जो मनोरोगी अपनी बीमारी पर ही गर्व करने लगे उसे कोई नहीं बचा सकता.  

“तुम मेरी बात के क़ायल नहीं होते. सच यह है कि जब कोई उत्तर नहीं सूझता तो चुप लगा जाते हो. ऐसा न होता तो तुम अपनी मूर्खता को युगसत्य बनाने के लिए रोज़ वही बात किसी न किसी बहाने दुहराते नहीं.

“तुम भूलते नहीं हो तुम उन सवालों से घबरा जाते हो जो मैं उठा चुका हूँ और फिर भी अपने को सही साबित करना चाहते हो और इस उम्मीद में कोई बहाना लेकर आ जाते हो, कि मैं कोई न कोई ऎसी चूक करूँ जिससे तुम सही सिद्ध हो जाओ. 

“यदि यही तुम्हारा लक्ष्य है, अपने को सही साबित करना, तो बताओ वह अपराध जिसे मैं करूँ तो तुम जीत जाओ. दोस्तों ने दोस्ती बचाने के किये कितनी क़ुर्बानियाँ दी हैं. यार आधी शताब्दी का साथ है, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ. पर जान भी दे दूँ तो तुम बच सकोगे क्या. मैं बहुत मामूली आदमी हूँ. महाकाल के रथ के सामने एक तिनके से भी तुच्छ. काल ने तुम्हे व्यर्थ मान लिया है, चीत्कार करते हुए रसातल को जाना है तुम्हे. जिन संगठनों से जुड़े हो उनसे पूछो कब तक बचे रहेंगे. वे आश्वस्त हों की उनके दिन फिर सकते हैं तो मुझसे बहस करो. तुम्हारे लिए तो मैं ज़िन्दगी तक हार सकता हूँ बहस हारना तो बहुत छोटी बात है.”

“तुम तो बात बात पर भाषण देना शुरू कर देते हो. मैं तो यह देखकर हैरान था कि शाहरुख़ जैसे बड़े कलाकार को भी असुरक्षा अनुभव होने लगी है. जानते हो उसके कितने करोड़ फैन हैं? इस से आंदोलनकारियों की ताक़त कितनी बढ़ी है?”

“तुम फैन का मतलब जानते हो.” 

“जानता हूँ. वे जो उस पर जान देते हैं.”

“फैन का मतलब होता है फैनेटिक. पागल. तुम ठीक कहते हो. वे पागलपन में जान दे सकते हैं पर यह नहीं समझ सकते कि कलाकारी और सोच-समझ दोनों एक ही चीज़ नही है.”. 

“सवाल कला कि समझ का नही है. असुरक्षा की भावना का है.”

“असुरक्षा की भावना तो है. इतना पैसा जो है. असुरक्षा की भावना तो अम्बानी को भी है. दोनों ने जेडप्लस की सुरक्षा की मांग की थी. शायद कांग्रेस सरकार ने दे भी दी थी.” 

“तुम दूसरी तरफ खींच रहे हो. मैं सामाजिक असुरक्षा की बात कर रहा हूँ.”

“समाज की समझ है शाहरुख़ को?”

“कमाल करते हो यार.”

“देखो वह अपनी फिल्मों में जो डायलॉग बोलता है वह किसी और का लिखा होता. तुम्हे पहले यह पता लगाना चाहिए था की यह डायलग किसका लिखा हुआ था.”

वह खीझ में हँसता है तो देखते ही बनता है.

“और सुनो. जहां तक समाज को समझने का सवाल है, वह समाज से इतनी दूर रहता है कि वह अपने उन सुरक्षा कर्मियों के भी हाल चाल नही जनता जो उसकी जान की रखवाली करते हैं. एक बात का और पता लगाना कि वह हिन्दी जानता है या नही. किसी ने बताया था कि वह जो डायलॉग बोलता है वह उसे रोमन अक्षरो में लिख कर दिए जाते हैं. इस मामले में ज़रूर वह सोनिया जी और राहुल जी की बाराबरी में आता है. उन्ही की तरह जनता से कटा हुआ और मजमेबाज़ी से खुश.”

उससे कुछ बोलते नहीं बन रहा था.

"और यह जो भावना वाली बात कर रहे हो न यह वह चीज़ है जो न हो तो आदमी रोबोट बन जाता हैं. लेकिन अधिक हो तो कोई  पागलपन में जान लेने और देने पर उतारू हो जाता हैं.” 

उसने कुछ कहना चाहा, मगर मैंने उसे बोलने ही नही दिया, "देखो जिनको आग भड़कानी होती है वे पहले भावना भड़काते हैं. और यह भावना भड़काने का खतरनाक खेल खेला जा रहा है. मैंने किसी दिन इन लेखकों को मज़माबाज कहा था. उन्हें इस बात पर ज़रूर खुशी होनी चाहिए कि करोडों जिसके पीछे पागल रहते हैं वह भी हमारे हाथ आगया. अब हमारी ताक़त बढ़ गई. पर उन्हें यह पता नहीं कि वे जो कह रहे हैं कि असुरक्षा बढ़ गई है वह किस जुमले का अनुवाद है क्योंकि ये उस भुलक्कड़पन के तुमसे बड़े रोगी है. ये अभी चार दिन पहले तक का इतिहास भूल जाते हैं. १९४७ से पहले असुरक्षा बढ़ गई है  को "इस्लाम खतरे में" के रूप में प्रचारित किया जाता था और इस्लाम इतने खतरे में पड़ जाता था कि मरता क्या न करता वाली कहावत से प्रेरित होकर नारए तकबीर अल्लाहु अकबर करते हुए दंगे भड़का दिए जाते थे.

"और सुनो, जिनको इतिहास भूल जाता है वे भविष्य का भी सत्यानाश कर देते हैं. इन दोनों के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है. अभी मैं कल हे एम्नेसिआ यानी भुलक्कड़पन पर इंटरनेट पर ही एक शोध निबंध पढ़ रहा था. उसकी कुछ पंक्तियाँ मैं मूल में ही सुनाना चाहूंगा.

amnesia. Amnesia also refers to an inability to recall information that is stored in memory. In simple terms, amnesia is the loss of memory. ..

People with amnesia also find it hard to imagine the future, because our constructions of future scenarios are closely linked to our recollections of past experiences. Researchers from Washington University in St. Louis used advanced brain imaging techniques to show that remembering the past and envisioning the future may go hand-in-hand, with each process sparking strikingly similar patterns of activity within precisely the same broad network of brain regions.

“ये नहीं जानते कि ये किस आग को भड़काने पर तुले है. अगर जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं तो ये समाजद्रोही भी हैं और देशद्रोही भी. कल इन्हीं में से किसी सरफिर ने आरएसएस की तुलना इस्लामिक स्टेट से कर दी. इतने गैर ज़िम्मेदार हैं ये लोग.

“मुझे इनसे भी बड़ी चिंता इस बात कि है कि महामहिम भी इनकी चिंता में शामिल हो हो गए है. जल्दी-जल्दी उन्हें तीन बार चिंतित होना पड़ा बिना किसी नई अप्रिय घटना के घटे. व्यंजना में इसके अर्थ अनेक हैं पर एक अर्थ यह भी है कि उन्हें अपना अतीत तो याद है पर वर्तमान?

महामहिम की चिंता से सोनिया जी इतनी उत्साहित हैं की महामहिम के दर्शन करने पहुँच गईं. कांग्रेस और उसकी खुली लूट में शामिल लोगों का एक ही मक़सद है देश को पिछड़ा रखना, मध्यकालीन मानसिकता को प्रोत्साहन देना, विकास के मार्ग को अवरुद्ध करना और सत्ता से बाहर होने पर देश का बेड़ा गर्क करना. मैं मोदी की परिपक्वता का इसलिए क़ायल हूँ कि उन्हे  पता है कि तुम भारत को पश्चिम एशिया बनाना चाहते हो और वह भारत को भारत बनाये रखने के लिए यहां के सबसे प्रभावशाली हथियार उपेक्षा और मौन का इतनी शालीनता से निर्वाह कर रहे हैं. वर्तमान को इतिहास की और नहीं भविष्य की और ले जाने के लिए प्राण-पण से प्रयत्न कर रहे हैं. इस मोदी को देश का आम आदमी जानता है, यहाँ का बुद्धिजीवी नहीं. यह मेरी समझ है. मैं किसी व्यक्ति के साथ नहीं देश और समाज के साथ हूँ और देश और समाज की चिंता जिनके लिए सर्वोपरि है उनके साथ हूँ. ज़रूरी नहीं कि तुम भी इसके क़ायल हो जाओ, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में मेरा भी कुछ हिस्सा है यह तो मानोगे ही.

11/5/2015 6:27:40 AM

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