वेदों की पपड़ी पर


"तुम कहाँ की बात को कहाँ पहुंचा देते हो. मैं तो एक सीधा सवाल करना चाहता था कि वेद में…" वह रुक गया.

"तुम जानते हो कि कुछ प्रश्न सीधे नही किये जा सकते. जो ऐसा कर लेते हैं वे यन्त्रमानव होते हैं और उनको कोई दूसरा चला रहा होता है. मनुष्य में आवेग की प्रबलता हो तो वह पशु हो जाता है. विवेकशून्य. या तो जुगुप्सु या डरावना या दयनीय. यदि बुद्धि की इतनी प्रबलता हो जाय कि उसमे भावनाओं के लिए स्थान ही न रह जाय तो वह यन्त्रमानव बन जाता है. कुछ और व्यवस्थाये उन्हें पशु बनाने को प्रोत्साहित करती हैं तो कुछ दूसरी यंत्रमानव बनाने का प्रयत्न करती हैं. मनुष्य बनाने में किसी की दिलचस्पी नहीं है. यह जिम्मेदारी मनुष्य को खुद उठानी पड़ती है- आत्मना उद्धरेत् आत्मानम् नात्मानम् अवसीदयेत्. और इसके लिए उसे पहले ऎसी संस्थाओं, व्यवस्थाओं और दलों से अलग होना पडेगा जो उसका एकांगी विकास करके अपना उपकरण बनाती हैं परन्तु मनुष्य नही रहने देतीं. हमारे बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी समस्या है की वे इन्ही संस्थाओं और दलों से चपके रहे हैं. उन्ही के अनुसार अपने को स्वयं ढालते रहे हैं इसलिए उनके विचारों में भी विचार का अभाव रहता है. वह किसी दूसरे का सिखाया या कहा होता है. सामान्य पाठक की अपेक्षाएं उससे पूरी नही होतीं इसलिए वह कटता जाता है. जनता और बुद्धिजीवी के बीच की दूरी बढाती जाती है और इसी अनुपात में साहित्यकार और बुद्धिजीवी की शती घटती जाती है और वह सत्ता के केन्द्रों और संगठनों पर अधिक निर्भर होता जाता है. अब गर्व करने को उसके पास उससे मिले सत्कार और पुरस्कार और नेताओं और नौकर्शाहों से निकटता ही रह जाते हैं जब कि उसकी हैसियत अपने विचार और जनता में अपनी पहुँच के बल पर ऎसी होनी चाहिए कि राजनेता और नौकरशाह उससे या उसकी पुस्तकों से परिचित होने पर गर्व करेंi उन्हें गर्व करने के लिए विदेशी लेखकों और विचारको के पास दौड़ना पड़ता है.

"देखो, मुझे डर है कि तुम आज फिर बहक जाओगे. मैं पूछता हूँ कि वेद में ..."

"देखो, मैं चालीस साल से वेद पर काम कर रहा हूँ और यह जानता हूँ कि मैं अभी तक उसकी ऊपरी पापड़ी तक ही पहुँच सका हूँ और साथ ही यह भी जानता हूँ कि मुझसे पहले मेरी जानकारी में कोई दूसरा वहाँ तक भी नहीं पहुँचा था. ऋग्वेद विश्व सभ्यता के प्रथम शिखर की साहित्यिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक ऊर्जा की अभिव्यक्ति के नितांत क्षुद्र अंश का संग्रह है, फिर भी इसकी इतनी तरह की व्याख्याएँ हो सकती हैं कि इसमें से हीरे से लेकर कंकड़ तक कुछ भी निकाला जा सकता है. यही नहीं उसी को एक हीरा बता सकता है दूसरा कंकड़.” 

"यार ऋग्वेद का नाम आते ही तुम इतने भावुक हो जाते हो कि जो कुछ नही जानता उसे भी लगता है इसका महिमामंडन किया जा रहा है."

"जो कुछ नहीं जानता वही ऎसी बात कर सकता है और जो कुछ जानना नहीं चाहता वही उसको प्रमाण मान सकता है. अंधे अँधा ठेलियाँ दोऊ कूप पडंत. मैं जानता हूँ तुम किसका फ़िक़रा दुहरा रहे हो. जब तक उसने वेद पर कुछ नही कहा था तब तक मैं भी उसे विद्वान मानता था. वद्वान को पता होना चाहिए कि कब और कहाँ चुप रहना चाहिए. यह बोलने से अधिक ज़रूरी है."

"तुम सीधे विषय पर क्यों नहीं आते."

"विषय पर ही बात कर रहा हूँ. विषय पर आने में तुमने कितना समय लिया था? पहले यह बता दू कि तथ्य कथन भी इतना अविश्वसनीय हो सकता है कि वह अतिरंजना लगे. कोई कहे कि प्रशांत महासागर में कुछ ऐसी गहराइयाँ हैं कि कैलाश पर्वत को भी उसमें डालो तो डूब जाये, इसे जो प्रशांत महासागर को नही जनता उसे यह अतिरंजना लगेगा और जिसने अपने गांव के पोखर को छोड़ कुछ देखा ही नही उसकी तो बात ही नहीं."

वह खीझ गया. हद करते हो. कौन सा तथ्य है तुम्हारे पास जो मेसोपोटामिान और मिस्री सभ्यताओं के रहते ऋग्वेद काल को प्राचीन सभ्यताओं का शिखर सिद्ध कर दे?"

"इसकी भाषा जो सीधे और कुछ टेढ़े भारत से युरोप तक फ़ैल गई जब की उनकी भाषाएँ लगभग पूरी सभ्य दुनिया में जब कि उनकी भाषाएँ उनके दायरे में सिमटी रह गईं. इसकी रीतियाया, नीतियाँ, पोशाक जो भारत से ग्रीस तक फ़ैल गया.

हद करते हो यार. लगता है विषय पर बात आज भी नही हो पायेगी. ये तुम हर चीज़ को उलट क्यों देते हो. तुम तो उनमें से लगते हो जो कहते हैं कि पिरामिडों के सूत्र भी शुल्बसूत्र से मिस्र पहुँचे."

"मैं नही जानता वे क्या और किस आधार पर ऐसा कहते हैं पर प्रभाव विस्तार तो इस देश से ही हो रहा है . भाषा और संस्कृति की बात तुम्हारी समझ में नहीं आएगी, पर यह तो समझ में आजाना चाहिए कि अनसिले वस्त्र से तन ढकने का प्रसार यूरोप से भारत की और नहीं हुआ हो सकता, भारत से यूनान की तरफ अवश्य हुआ है और इसमें मिस्र भी लिपट आता है. मैं उलटता नहीं हूँ. इतनी मेहनत से जिसे हज़ारों इतिहासकारों, भाषाशास्त्रियों और अनुसंधान संस्थानों द्वारा उलटा गया,उसे एक अकेले ही सीधा कर देता हूँ तो वे सभी ज़मीं पर आजाते हैं और घबराहट में चीखते हैं उधर मत देखना उधर मत देखना, देखोगे तो नंगा हो जाऊँगा. अपनी आँखों देखता हूँ. तुम भी देखो और अपनी आँखों देखने की आदत डालो.


चित्रकार चार्ल्‍स अलफोंस की कृति सुकरात की मृत्‍यु


महात्‍मा गांधी का भारतीय वेश


स्‍पार्टन युवती की साड़ी 


मिश्री नारी परिधान


मिश्री पुरुष परिधानों में से एक


जरथुस्‍त्र की एक परिकल्पित छवि

आधुनिक अरब परिधान

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