Dynamics of history

“तुम क्या सचमुच मानते हो कि पूँजीवाद के बाद साम्यवाद का दौर आएगा?” 

“आना तो चाहिए.” 

“यह चाहिए कहाँ से घुस आया. कल तो तुम बहुत आश्वस्त लग रहे थे.”

“बात यह है की पूंजीवाद के उठान के बीच ही साम्यवाद के प्रयोग ने वह विकृति पैदा पर दी जो कच्चे फोड़े को चीरा देने से पैदा होती है. इसने विषाक्तता को बढ़ा दिया. हमारे प्रतिरोध-तंत्र को उन विषाणुओं से लड़ने का अवसर देना चाहिए था. इस बीच भी अदृश्य खून-खराबा होता. असंख्य श्वेत कोशिकाएं शहीद होतीं. उनकी बलि मवाद बन कर फोड़े को विस्फोटक बना देती उन्हें युद्धभूमि से बाहर निकाल लेते. नए योद्धाओं को मोर्चा संभालने को खुला मैदान मिल जाता तो हमें कुछ खास करना ही नहीं पड़ता. विजय हासिल हो जाती. सूखते समय थोड़ा मरहम ही काफी होता. असमय हस्तक्षेप अतिरिक्त आयास की मांग करता है और यही इस बात की पूर्वसूचना भी है कि परिणाम भी सुखद न होंगे. 

"तुम अगर सोशियोलॉजी को पैथोलॉजी में घोल कर समझाना चाहोगे तो मैं तो समझने से रहा,"

"देखो, उपमाएँ और दृष्टान्त विचार को मूर्त कर देते हैं; ये वास्तविकता को समझने में मदद तो करते है परन्तु वास्तविकता के स्थानापन्न नही होते हैं. वे वास्तविकता के किसी एक लक्षण या पक्ष पर प्रकाश डालते हैं, उनका भी स्थान नहीं ले सकते. विचार और विचार-प्रक्रिया में इतने वक्र हैं कि किसी एक से छूटे तो किसी और में बंध गए. यदि तुम पूँजीवाद को व्याधि मानते हो तो इसके चरित्र को समझ नहीं पाओगे.” 

“खुद उलटी बातें करते हो और पकड़ में आने पर पैंतरा बदलने लगते हो. पूंजीवाद व्याधि नही है तो क्या है? सारे समाज की दौलत चन्द लुटेरों के हाथ में सिमट आना, क्या तुम इसे समाज के हित में मानते हो?”

“देखो मैं खुद उलझन में हूँ. समझ में नही आ रहा की अपनी बात कैसे रखूँ. मैं पहले उस तथ्य को रखूँ जिस पर कोई मतभेद नहीं. अर्थात पूंजीवाद सामंती व्यवस्था का अगला चरण है और इसलिए एक प्रगतिशील चरण है.” 

“ठीक है.”

“अगर प्रगतिशील चरण है तो उतनी प्रगति तो हो लेने दो जितनी उसके बूते की है. उससे पहले ही उसपर हमला करोगे तो उस प्रगति में भी बाधा डालोगे. तुम्हारी अधिकतम शक्ति बाधा पहुँचाने पर व्यय होगी। एक ही छलांग में दो छलांगों की दूरी पार करना चाहोगे तो या तो अपनी टाँग तोड़ लोगे या मुँह के बल गिरोगे। सही चरण पर उसी ऊर्जा को लगाने पर जो कुछ तुम्हें हासिल हो सकता था उससे बहुत कम हासिल होगा और जिस रूप में हासिल होगा वह अकालकावलित हो जाएगा।  

“एक बात और, यदि तुम मानते हो पूँजीवाद की प्रगतिशील भूमिका है और उसमे तुम व्यवधान डालते हो तो तुम प्रगतिवादी हुए या प्रतिक्रियावादी?

“यदि तुम मानते हो कि उसका चरण है तो उसे चलने देते. तुम्हारे पास तो न चरण थे न यह तुम्हारा चरण था.” 

“इतना  बड़ा काडर है हमारा, इतने सारे साहित्यकार पत्रकार और फिर भी कहते हो हमारे पास चरण नहीं."

"चरण तब होते जब जनमानस में तुम्हारी पैठ होती. तुम्हारी पूरी पैठ तो उन मज़दूरों तक में नहीं हो पाई. तुम्हारा चरण तब होता जब तुम्हारे भीतर सर्जनात्मकता होती. तुमने केवल विघटनकारी की भूमिका निभाई है."

“तुम लोगों से तुम्हारा मतलब  किससे है? मार्क्सिस्टों से?"

"नहीं, कम्युनिस्टों से. मार्क्सिस्ट तो जैसा कहा अकेला मैं हूँ. तुम तो दूसरे की बारात में अपना दूल्हा लेकर पहुँच गए थे कि दुल्हन हमें चाहिए. तुम लोगों में तो वक़्त की नाज़ुकी तक की पहचान नही. वक़्त की नाज़ुकी का मतलब इतिहासबोध, कालबोध. मतलब वह चीज़ जिसके कारण मार्क्सवाद में द्वंद्वात्मक के पहले ऐतिहासिक विशेषण लगा है. यार तुम लोग उतावली में अपना नाम तक भूल गए."

"क्रांति ऐसे ही कर के दिखा दी."

"क्रांति तुमने नही की थी, तुमने क्रांति पर डाका डाला था. धोखाधड़ी से हथिया लिया था इसे. रूसी क्रांति का इतिहास फिर से पढ़ो. एक बात सुन लो। कालबोध कम्युनिष्टों का बहुत गड़बड़ है। जिसे तुम फरवरी क्रान्ति कहते हो वह मार्च में हुई थी और जिसे अक्तूबर क्रान्ति कहते हो वह नवम्बर में। तुम लोग इतने पिछड़े दिमाग के हो कि उन्नीसवीं सदी में भी पुराने जूलियन कैलेंडर से कालगणना कर रहे थे फिर समय के साथ कैसे चल सकते हो।“

"देखो, यह पता तुम्हे भी है कि पूंजीवाद जितना विकराल रूप धारण करता जा रहा था, उसमे उसे तबाही का अधिक समय देना भी समझदारी नही थी." 

"विकराल रूप धारण करता जा रहा था, अर्थात उसमें बहुत ऊर्जा बची हुई थी. 

"खैर मैं केवल यह कह रहा था कि यदि पूंजीवाद अपने प्रचंड रूप में आचुका था तो पूंजीवादी प्रतिस्पर्धा में एक दूसरे को लड़ कट कर कमज़ोर होने या मिटने देना चाहिए था."

"इतिहास के घटित हो जाने के बाद एक बच्चा भी ज्ञानी बन कर बड़े बड़ों की गलतियां निकाल सकता है तुम तो फिर भी कुछ पढ़े लिखे हो. साम्यवाद की वापसी के नाम पर तुम उसे कोसने का बहाना तलाश कर रहे थे."

“नहीं यह याद दिला रहा था कि तुम पर सत्ता का भूत सवार था और इसलिए जिसे सिद्धांत के रूप में जान रहे थे उसकी भी अनदेखी कर रहे थे. 

तुम्हारा मतलब? 

"मतलब यह है कि सैद्धांतिकी के रूप में तुम जानते और दूसरों को समझाते आ रहे थे की कोई सभ्यता अपनी तकनीकी पराकाष्ठा पर पहुँच कर ठहर जाती है. उसके बाद उसकी सर्जनात्मकता चुक जाती है और उसका पतन होने लगता है. यही वह समय है जिस पर कोई दूसरी सभ्यता उस पर हावी हो जाती है. तुम्हे देखना था कि पूँजीवाद अपनी तकनीकी दक्षता भी बढ़ाता जा रहा है और तकनीक में सुधर भी कर रहा है और उसमें इतनी सृजनात्मकता बची हुई है  की प्रतिक्षण असंख्य नए अविष्कार हो रहे है. यह दुनिया को बहुत कुछ देने, बहुत कुछ हासिल करने और अकूत उचाइयां छूने की स्थिति में है इसलिएन इसके साथ छेड़छाड़ नही की जा सकती. की गई तो संकट में हम स्वयं पड़ जाएंगे. इसके बाद भी, इस सच्चाई को जानते हुए भी यह खतरनाक दखलंदाज़ी की गई जिसका परिणाम था ..."

यार छोड़ो तुमने मेरा मूड खराब कर दिया. इस पर कल बात करेंगे.

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