सूच्यग्रा हि अनर्थकाः

“तुम तो गुजरात में जो हुआ उसका भी जिम्मा कांग्रेस पर डाल सकते हो।“

डाल सकता हूँ, पर डालूँगा नहीं।

वह हँसने लगा। डाल सकते हो जरा सुनूँ तो कैसे।

तुम्हे मालूम है बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद अयोध्या में इस बाबरी मस्जिद गिराए जाने के विरोध में साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों एक प्रदर्शन हुआ था। उसमें मुझसे भी चलने को कहा गया तो तैयार हो गया। पूछा, ‘टिकट का पैसा किसके पास भेज दूँ।‘ जबाब मिला, ‘उसका इन्तजाम हो गया है।‘ मैंने कहा, ‘उस हालत में मैं नहीं जा सकता, क्योंकि जिस भी ऐजेंसी ने भाड़े की व्यवस्था की है, वह मेरा इस्तेमाल कर रही है।‘ यह आयोजन सहमत ने किया था। स्पे शल ट्रेन का पैसा और ऊपर से एक मोटी रकम उसी कांग्रेस ने दिया था जिसके विरुद्ध नुक्कड़ नाटक करते हुए सफदर हाशमी  शहीद हुए थे। इसे चिता पर रोटी सेंकना भी कह सकते हो। तुम जानते हो उसके बाद सफदर हाशमी की पत्नी, क्या नाम है उसका, माला हाशमी या जो कुछ भी हो, उसने सहमत से नाता तोड़ लिया था। मुमकिन है बाद में उससे जुड़ भी गई हो। अब सहमत नुक्कड़ नाटकों के लिए नहीं धन्धेबाजी और शगल के लिए जाना जाता है।“ 

“मैं पूछ रहा हूँ कुछ और तुम बहक गए सहमत की ओर।“

“तो अयोध्या में जो प्रदर्शन हुआ था उसमें रामकथा से सम्बन्धित बहुत सारी सामग्री थी। मेरी अपनी पुस्तक ‘अपने अपने राम’ भी थी। अनर्गल बहुत कुछ था। जोर अनर्गल पर ही था। असल में इसमें प्रतिशोध का भाव था न कि समझ पैदा करने का प्रयत्न । प्रदर्शन का ठीक ठीक रूप क्या था यह मैं नहीं जानता, परन्तु संघ से जुड़े कुछ तत्वों ने वहाँ भारी बखेड़ा किया था। मानबहादुर सिंह ने मुझे बाद में बताया कि यदि मैं वहाँ होता तो मेरी जान भी जा सकती थी। अगर वह आयोजन उसमें भाग लेने वालों के अपने पैसे से हुआ होता और मुझे यह कोई अग्रिम सूचना देता कि वहाँ मुझ पर हमला होगा तो मैं उसके बाद भी उसमें शामिल हुआ होता और यदि मारपीट से पहले कहा-सुनी का मौका मिलता तो उन्हें समझाने का प्रयत्न भी करता कि राम की जो महिमा अपने अपने राम में है वैसा इससे पहले की किसी कृति में नहीं।“

“तुम फिर भटक गए।“

“भटका नहीं हूँ। मैं कह रहा हूँ कि यदि उस प्रदर्शन की प्रतिक्रिया ऐसी उग्रता ले लेती जैसी गोधरा में देखने में आई और उसके बाद इसने भयानक आयाम लिया होता तो उसकी जितनी जिम्मेदारी अर्जुन सिंह पर आती उतनी ही जिम्मेदारी मैं गुजरात के दंगों के लिए मोदी की मानता हूँ।“

बाबरी कांड के दस साल पूरे होने पर स्पेशल ट्रेन में स्वयं सेवक भर कर भेजने की व्यवस्था उन्होंने की थी और वह भीड़ उस तरह की सुशिक्षित भी नहीं थी जो सहमत वाले प्रदर्शन में थी। वे जिस तरह के उत्तेजक नारे लगाते हुए घूम रहे थे उसे टीवी पर देख कर मेरा खून खौल रहा था और मैं घबरा रहा था कि इसके परिणाम बहुत अनिष्टकर हो सकते हैं।  

“अनियन्त्रित भीड़ संचित ऊर्जा का ऐसा भंडार होता है जिसका यदि किसी रूप में उन्मोचन हो वह ध्वंसकारी ही होगा। प्राकृतिक प्रकोप की तरह। यदि किसी तरह की छेड़छाड़ हो जाती तो यह अयोध्या में ही बहुत विकट रूप ले सकता था। गोधरा में इस भीड़ का चरित्र, नारेबाजी या कृत्य क्या था यह पता नहीं, परन्तु गोधरा सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदन शील क्षेत्र है।

“एक दुर्घटना हो गई और तुमने पूरे क्षेत्र को संवेदन शील ठहरा दिया।“

“गोधरा में 1947 के बाद1952, 1959, 1961, 1965, 1967, 1972, 1974, 1980, 1983, 1989 और 1990 में दंगे भड़क चुके थे। और यह संभव है कि पेट्रोल आदि पहले से ही जुटा लिया गया हो कि आने पर खबर लेंगे। गोधरा के बाद गुजरात घटित होना ही था।“ 

चाणक्य का एक सूत्र है, ‘सूच्यग्रा हि अनर्थकाः भवन्ति’ । सुई की नोक जैसी चूक भी बहुत बड़े अनर्थ का कारण बन जाती है। इस बोध को हमारे यहाँ कई रूपों में दुहराया जाता रहा है। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को अपने किसी भी कथन या कार्य में कितनी सावधानी बरतनी चाहिए यह तो इस सूत्र में है ही। उस चूक के बाद नियन्त्रण आपके हाथ से निकल जाता है, कालदेव आगे के चक्र को सँभाल लेते हैं।“

“फिर आगए कालदेव पर।“

“कालदेव से मेरा मतलब उन अज्ञात, दृश्य-अदृश्य अनन्त तत्वों से है जिनको चिन्हित या परिभाषित नहीं किया जा सकता।

“तो मैं उस पहली चूक के लिए, जो ही अपने निर्णय और विवेक और नियन्त्रण की सीमा में थी, मोदी को जिम्मेदार मानता रहा हूँ। गुजरात को नियन्त्रित करने में कुछ प्रमाद भी हो सकता है और कुछ सबक सिखाने का भाव भी। यह स्वाभाविक है। लेकिन इसकी तुलना उन दंगों से नहीं की जा सकती जो सोच समझ कर कांग्रेस द्वारा कराए जाते रहे और जिसमें पुलिस या अर्धसैनिक बल किसी की भी मदद ली जाती रही है।“

“तुम तो हद कर देते हो।“ 

“देखो मध्यकाल में शासकों ने, उनके अमलों ने हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किए, परन्तु कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए। ब्रितानी काल में सारे दंगे अंगे्रजों की खुली या दबी शह पर किए जाते रहे और इसी के बल पर उन्होंने मुसलमानों को यह भी समझा लिया था कि वे तभी तक सुरक्षित हैं जब तक अंग्रेजी शासन है। तुम्हें याद है न सर सैयद ने क्या कहा था।“

“कभी इतने विस्तार से सैयद अहमद को पढ़ा नहीं।“

“उनका मानना था कि यदि भारत को स्वतन्त्रता मिल भी जाय तो यूरोप का कोई दूसरा देश  इस पर आक्रमण करके इसे अपने अधीन कर लेगा और किसी अन्य यूरोपीय देश का प्रशासन अंग्रेजी प्र शासन से बहुत कठोर और बुरा है इसलिए अंग्रेजों के अधीन रह कर ही हम प्रगति कर सकते हैं, इसलिए ब्रिटिश सरकार को यहाँ अनन्त काल तक रहना चाहिए। 

और कुछ ऐसा ही विश्वास हिन्दूफोबिया पैदा करके कांग्रेस ने मुस्लिम वोट सुनिश्चित करने के लिए पैदा किया और इसको बनाए रखने के लिए दंगे भी कराती रही और यह डर दिखा कर कि हिन्दूशासन से तो यह हर हालत में अच्छा है, इसका जितना लाभ उठा सकती थी, उठाती रही। हम केवल यह जानते हैं 1950 से 1990 के बीच 2500 दंगे हुए थे और उस दौर में शासन कांग्रेस का ही था।

“तुम बातें तो अच्छी गढ़ लेते हो यह जानता था, अब लगता है आँकड़े भी गढ़ लेते हो। कहाँ से मिला यह आँकड़ा।“ 

“17.12.1990 को टाइम्स आफ इंडिया में संसद में विजय कुमार मल्होत्रा के बयान की रपट में यह दावा था।“ 

“और तुमने मान लिया?”

“तब तक मानना पड़ेगा जब तक कोई दूसरा अधिक भरोसे का स्रोत नहीं मिल जाता क्योंकि संसद में किसी ने इसका खंडन नहीं किया था।“

“किया भी हो तो टाइम्स आफ इंडिया का उस दौर का संपादक उसे छापता ही नहीं।“

“तुम जानते हो वोटबैंक की राजनीति कौन करता आया है? बाँट कर रखने के हथकंडे कौन अपनाता आया है? दहशतगर्दी करते हुए भी हिन्दू फोबिया उभार कर रक्षक की भूमिका में कौन आता रहा है? नहीं जानते हो तो पता लगाओ। तब पता लगेगा कि अंग्रेजों से बाँटो और राज करो की नीति विरासत में किसने ली, फिर खुद इस नतीजे पर पहुँच जाओगे कि जब तक उसका शासन रहेगा दंगों से, घृणा और दंगे-फसाद से और असुरक्षा के हथकंडों से मुक्ति नहीं मिल सकती।“ 

“हिन्दू संगठनों का जो चरित्र पहले था उसमें सचमुच इनका चेहरा डरावना बना दिया गया था, परन्तु अब पहली बार एक व्यक्ति ऐसा आया है जो आपसी लड़ाई से आगे विकास की दि शा में ले जाने की बात करता है और उस पहली चूक के बाद उसने आज तक कथनी या करनी के स्तर पर ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे उसका यह दावा ढोंग लगे। वही सैयद अहमद के उस सपने को भी पूरा कर सकता है जिसकी ओर तुम्हारा ध्यान न गया होगा। 

वह मेरी ओर देखने लगा । 

“उनका मानना था कि हिन्दू और मुसलमान आपसी मेल&जोल से ही अपना अधिकतम विकास कर सकते हैं।  वह इसी दिशा में भीतरी और बाहरी दबावों के बीच काम कर रहा है। उसे काम करने दो। आलोचना करो, फतवेबाजी बन्द करो।“

11/16/2015 12:16:51 PM

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