तुम मूर्ख हो या पागल?

उसने कहा, “तुम मूर्ख हो या पागल?”

मैंने कहा “क्या दोनों एकसाथ नहीं हो सकता?”

"नहीं. क्योंकि कई पागल बहुत प्रतिभाशाली होते हैं और कई बार तो नए विचारो के कारण दार्शनिकों तक को पागल करार दे दिया जाता है."

"परन्तु शेक्सपिअर के मुर्ख ही बेलौस दार्शनिक बातें करते हैं."

वह हँसने लगा, "तुम मूर्ख तो नहीं हो यह मान लिया, पर तुम ऎसी बातें क्यों कह जाते हो जिससे तुम्हारा ही नुक्सान हो?

मैंने कहा, "जो नफ़ा नुक्सान की चिन्ता करते हैं उनके पास कहने को कुछ नहीं होता. वे बाज़ारभाव पर नज़र रखते हैं. कुछ कहते  नहीं हैं. जल्दी जल्दी बोली लगाते हैं कि कहीं मौक़ा हाथ से निकल न जाए.  तुम भी उन्ही में हो."

वह चिढ गया, "कैसी मूर्खों जैसी बात करते हो!"

मैंने मज़ा लेते हुए कहा, 'और तुम होश हवास भी खो बैठते हो."

वह हैरान होकर मुझे देखने लगा, पर उस देखने में यह सवाल भी था कि मैं कह क्या रहा हूँ .

मैंने मज़ा लेते हुए कहा, "तुम अभी सनद दे चुके हो कि मैं मूर्ख नहीं हूँ और उसके ठीक बाद कह बैठे मैं मूर्खों जैसी बात करता हूँ. होश में होते तो इतनी जल्द अपने फैसले से मुकर जाते?

यह उन बिरल मौकों में एक था जब हम दोनों एक साथ हॅंस रहे थे. 

हाथ मिलाते हुए उसने कहा, "जो बात कहना चाहता था वह बात तो हो ही नहीं पाई. चलो कल सही."

मैंने हँसते हुए कहा, "पूरी कल भी नही होगी और सही तो हो ही नही सकती. ज़िंदगी अधूरेपन का दूसरा नाम है.”  

10/6/2015 9:45:12 AM

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